प्रद्युम्न हत्याकांड: छात्र पर चलेगा बालिग की तरह केस, नहीं होगी उम्रकैद या फांसी

नई दिल्ली। प्रद्युम्न की हत्या के आरोपी नाबालिग पर भले ही बालिग की तरह मुकदमा चले लेकिन उसे उम्रकैद या मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा सकती। कानून में ऐसी सजा देने पर रोक है। इतना ही नहीं आरोपी छात्र २१ वर्ष तक जेल भी नहीं भेजा जाएगा। वो बाल सुधार गृह मे ही रहेगा।

नये कानून के पेंच में फंसा आरोपी छात्र
किशोर न्याय कानून (जेजे एक्ट) में ऐसे मामलों में सजा के बारे में अदालत के लिए स्पष्ट दायरा खींचा गया है। धारा २१ कहती है कि कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी बच्चे या किशोर को उम्रकैद, मृत्युदंड या ऐसी सजा नहीं दी जाएगी जिसमें उसके बाहर आने की उम्मीद न हो। प्रद्युम्न हत्याकांड में आरोपी को सजा के बारे में कानून का यह प्रावधान महत्वपूर्ण है। क्योंकि आइपीसी की धारा ३०२ में हत्या में उम्रकैद या फांसी की सजा तय है। इसमें न्यूनतम सजा उम्रकैद है और दोषी पाये जाने पर अदालत इससे कम सजा नहीं दे सकती। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में कह चुका है कि उम्रकैद का मतलब जीवनभर की कैद होता है यानि उम्रकैदी निश्चित समय के बाद अनिवार्य रिहाई की मांग नहीं कर सकता। लेकिन जेजे एक्ट इस कड़ी सजा पर रोक लगाता है।
दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के एक आरोपी के नाबालिग होने के कारण कड़ी सजा से बच निकलने के बाद कानून में संशोधन की मांग उठी थी। सरकार ने काफी सोच विचार के बाद संशोधन किया और गंभीर अपराध में आरोपी 16 से 18 आयु वर्ग के किशोर पर बालिग व्यक्ति की तरह मुकदमा चलाने का रास्ता खोला। लेकिन ऐसा करते समय ध्यान रखा गया है कि भले ही आरोपी जघन्य अपराध में शामिल हो लेकिन उसके साथ खुंखार अपराधी जैसा व्यवहार न हो। जेजे एक्ट बच्चों और किशोरों के लिए बना सुधारात्मक कानून है इसलिए उसमें नरम रवैया अपनाया गया है और पूरे कानून में इसकी प्रतिध्वनि दिखाई देती है।
इस मामले में जेजे बोर्ड ने आरोपी छात्र पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने और उसे बाल सत्र न्यायालय (चाइल्ड सेशन कोर्ट) में पेश करने का आदेश दिया है। जेजे एक्ट की धारा 19 (1) की उपधारा 1 व 2 कहती है कि आरोपी पर बालिग की तरह मुकदमा चलाए जाने की जेजे बोर्ड की रिपोर्ट मिलने के बाद बाल सत्र न्यायालय उस रिपोर्ट का आंकलन करके दो तरह का निर्णय ले सकता है। एक यह कि आरोपी किशोर पर बालिग की तरह सीआरपीसी के प्रावधानों में मुकदमा चलाए जाने और फैसला दिये जाने की जरूरत है। यानी सामान्य आरोपी की तरह ट्रायल और फैसला हो। दूसरे यह कि आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाए जाने की जरूरत नहीं है, और तब अदालत मामले में जेजे बोर्ड की तरह जांच करके धारा 18 के तहत आवश्यक आदेश दे सकती है। यानि आरोपी पर नाबालिग की तरह ही मुकदमा चलेगा। इस तरह नाबालिग पर व्यस्क की तरह मुकदमा चलाने के बारे में एक और सुरक्षात्मक उपाय किया गया है ताकि नाबालिग आरोपी के साथ कोई अन्याय न हो।
इतना ही नहीं धारा 19 की उपधारा 3 कहती है कि आरोपी किशोर 21 वर्ष का होने तक सुरक्षित जगह रखा जाये। यानि उसे बाल सुधार गृह मे रखा जायेगा। 21 वर्ष के बाद उसे जेल भेजा जा सकता है। इस बीच लगातार निगरानी और आंकलन होगा। धारा 20 कहती है कि २१ वर्ष का होने के बाद भी अगर सजा बचती है तो अदालत सजा भुगतने के लिए उसे जेल भेज सकती है या फिर निगरानी अथारिटी की देखरेख में शर्तों के साथ रिहा कर सकती है।

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