वोटरों की नाराजगी के भय से सहमी सियासी पार्टियां
देहरादून : सत्रह साल में पूरी सरकार विधानसभा सत्र के लिए चार बार गैरसैंण जा चुकी है, लेकिन राजधानी के मसले को लटकाने में कांग्रेस व भाजपा दोनों का रवैया एक जैसा ही है। यूं कहें कि दोनों के लिए यह मसला गर्म दूध की तरह है, न निगलते बनता है न उगलते।
सियासी एजेंडों और भाषणों में गैरसैंण के विकास की बात तो वे करते आए हैं, लेकिन राजधानी के सवाल पर सियासी हित आड़े आ जाते हैं। दरअसल, पहाड़ और मैदान दोनों ही जगह विस सीटों की संख्या लगभग 35-35 है। ऐसे में गैरसैंण अथवा देहरादून किसी एक को स्थायी राजधानी घोषित करने से वोटरों की नाराजगी का भय दोनों ही दलों को सताये जा रहा है।
हालांकि, भाजपा ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात अपने चुनावी एजेंडे में कही है, लेकिन मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि इस सवाल पर थोड़ा और इंतजार करना होगा। वहीं, कांग्रेस भी पत्ते खोलने से बच रही है।
गैरसैंण में विधानसभा के चार सत्र हो चुके हैं। तीन सत्र कांग्रेस ने किए, जबकि मौजूदा सरकार का शीतकालीन सत्र दो दिन पहले पहले संपन्न हुआ।
चारों ही सत्रों में गैरसैंण राजधानी का मसला खूब उछला। कांग्रेस के कार्यकाल में भाजपा ने इस सवाल को जोरशोर से उठाया, पर कांग्रेस टस से मस नहीं हुई। सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद भी तस्वीर वैसी ही है, अलबत्ता पाले जरूर बदल गए हैं। अब कांग्रेस ने सदन में गैरसैंण कार्ड खेलकर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की, मगर वह भी अभी इंतजार करने की बात कह रही है।
ये बात अलग है कि कांग्रेस राज में गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानभवन समेत अन्य निर्माण कायों में तेजी अवश्य आई। साथ ही वहां सचिवालय भवन समेत दूसरे कार्यों को भी मंजूरी दी गई। हालांकि, अब भाजपा सरकार ने भी अवस्थापना संबंधी कार्यों में तेजी लाने के लिए 10 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था अनुपूरक बजट में की है।
इसके बावजूद बड़ा सवाल ये कि आखिर गैरसैंण पर दोनों ही दल क्यों बचते आ रहे हैं। असल में दोनों ही इस सियासी नफा-नुकसान के नजरिये से देख रहे हैं। यही कारण भी रहा कि गैरसैंण में हुए विस के दो दिनी सत्र में राज्य की स्थायी राजधानी को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने कोई स्पष्ट सोच प्रदर्शित नहीं की।
वे इसलिए बच रहे कि कहीं इस संवेदनशील मसले पर वोटरों की नाराजगी आने वाले दिनों में भारी न पड़ जाए। वैसे भी अगले साल से चुनावी दौर प्रारंभ हो रहा है। पहले निकाय चुनाव और फिर 2019 में लोकसभा चुनाव। ऐसे में वोटर नाराज हो तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। सूरतेहाल, भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे को सियासी फुटबाल बनाए रखने में भी भलाई समझ रहे हैं।