शिशु मृत्यु दर मामले में पन्ना, गुना और अशोकनगर की हालत चिंताजनक
गुना। शिशु मृत्यु दर के मामले में प्रदेश में पन्ना, गुना और अशोकनगर जिले में हालात चिंताजनक हैं। पन्ना जिले में हर साल पैदा होने वाले एक हजार बच्चों पर 69 बच्चे दम तोड़ देते हैं, जबकि गुना और अशोकनगर में प्रति हजार पर 60 बच्चे दम तोड़ रहे हैं।
इन हालात को देखते हुए राज्य नीति आयोग ने हाल ही में इन जिलों के कलेक्टर को पत्र भेजकर लगातार बढ़ रही शिशु मृत्यु दर को लेकर चेताया है। साथ ही आगामी तीन वर्षों में शिशु मृत्यु दर को घटाने का लक्ष्य दिया है। मालूम हो कि मप्र में प्रति हजार पर 47 बच्चे हर साल दम तोड़ देते हैं। शिशु मृत्यु दर के मामले में देश में सबसे खराब हालत मप्र की ही है।
शिशु मृत्यु दर के मामले में पन्ना जिला प्रदेश में पहले नंबर पर है। जबकि गुना और अशोकनगर दूसरे नंबर पर। सबसे कम शिशु मृत्यु दर वाले जिलों में भोपाल, ग्वालियर हैं। इन महानगरों में शिशु मृत्युदर सिर्फ 39 है। शिशु मृत्यु दर का यह आंकड़ा वर्ष 2015 में हुए एसआरएस (जनगणना के रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की बुलेटिन) और वर्ष 2012-13 के वार्षिक स्वास्थ्य सर्वे के आधार पर बताया गया है।
मप्र में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर
शिशु मृत्यु दर के मामले में वर्ष 2012-13 में हुए सर्वे पर नजर डालें तो गुना तीसरे नंबर पर था। तब यहां की शिशु मृत्यु दर 75 थी, जबकि पन्ना की 85 और सतना की 83 थी। ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर की शिशु मृत्यु दर सबसे कम सिर्फ 48 थी। पांच वर्ष बाद शिशु मृत्यु दर के मामले में गुना जिले के आंकड़ों में सुधार जरूर हुआ है। लेकिन हम तीसरे स्थान से दूसरे पर पहुंच गए हैं। एसआरएस बुलेटिन में मप्र की शिशु मृत्यु दर 47 है, यह देश में पहले स्थान पर है। यानि शिशु मृत्यु दर के मामले में मप्र देश में सबसे बदतर है।
बच्चों की मौत का बड़ा कारण कुपोषण
निमोनया से: 13 प्रतिशत
कुपोषण से: 45 प्रतिशत
डायरिया से: 9.2 प्रतिशत
गर्भावस्था इंज्यूरी से: 5 प्रतिशत
मलेरिया से: 7.3 प्रतिशत
अन्य कारण : 11.4 प्रतिशत
बच्चों के कुपोषित होने के कारण
समय से पूर्व जन्म: 35 प्रतिशत
डिलेवरी के समय लापरवाही: 24 प्रतिशत
बीमारी: 15 प्रतिशत
अन्य कारण: 14 प्रतिशत
नीति आयोग ने भी चिंता जताई है
जिले का शिशु मृत्युदर का ग्राफ नीचे लाने जो काम होना चाहिए, वह पिछले कुछ वर्ष में नहीं हुए। अब जो टारगेट मिला है, उसे पूरा करने संस्थागत प्रसव, संपूर्ण टीकाकरण के साथ शिशु गृह देखभाल कार्यक्रम चलाएंगे। शिशु मृत्युदर कम करने तीन वर्ष का समय काफी कम है, लेकिन सख्ती से काम करेंगे। लापरवाही अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी करेंगे। नीति आयोग ने भी इसे लेकर चिंता जताई है।
News Source: jagran.com