मुलायम का समाजवाद हासिये पर
उत्तर प्रदेश में मुलायम का समाजवाद हासिये पर जाता दिख रहा है। बसपा से गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी में विरोध के स्वर फूटने लगे हैं। समाजवादी पार्टी के ही विघायक द्वारा कहा जा रहा है कि जब तक अखिलेश बसपा सुप्रीमों के समाने दंडवत करते रहेंगे तभी तक यह गठबंधन चलेगा। यहां बीजेपी नेता और सीएम योगी के बयान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। योगी का हकीकत बयां करता यह बयान कि सपा−बसपा गठबंधन नहीं होता तो लोकसभा चुनाव में सपा के वजूद पर बन आती, कई संकेत देता है। योगी यहीं नहीं रूके उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मायावती ने तो उन पर जरूरत से ज्यादा कृपा कीं वह (अखिलेश) तो दस सीटों का आँफर भी नाक रगड़कर मान लेते। खैर, सच्चाई यही है कि जब से मुलायम को समाजवादी पार्टी से दूर किया गया है, तब से अखिलेश लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। मुलायम समाजवादी पार्टी में वटवृक्ष की तरह से थे। 2012 में उन्हीं के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने मायावती सरकार को सत्ता से बेदखल किया था। तब स्वयं सीएम बनने की बजाया मुलायम ने पुत्र अखिलेश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था। इससे अब पार्टी से बाहर करा रास्ता देख चुके शिवपाल यादव भाई मुलायम से नाराज भी हो गये थे। इसका कारण भी था। शिवपाल ने भले ही मुलायम सिंह की छत्रछाया में सियासत की दुनिया में नई ऊंचाइयां हासिल की थीं, किन्तु पार्टी मे किए गये उनके योगदान को भी कभी कोई अनदेखा नहीं कर पाया था। अखिलेश को सीएम बनाए जाने के समय भी शिवपाल खून का घूंट पीकर रह गये थे, लेकिन भाई मुलायम से चोट खाए शिवपाल ने भतीजे अखिलेश कैबिनेट के अधीन भी काम करने से गुरेज नहीं किया। समाजवादी पार्टी में 2014 के लोकसभा चुनाव तक सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन विरोधी जरूर अखिलेश पर हॉफ सीएम होने का तंज कसते रहते थे। तब मुलायम, शिवपाल यादव और आजम खान को सुपर सीएम की संज्ञा मिली हुई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारें में भी अखिलेश की कोई खास नहीं चली।