रोगों के लिए अकेलापन भी एक बड़ी वज़ह
हमारे पास विभिन्न तरह के विभिन्न रोगों के लिए सुपर स्टार अस्पताल हैं। जहां जाने के बाद विभिन्न सुविधाओं से लैस कमरे, डॉक्टर के विजिट, खान−पान उपलब्ध हैं। एक हजार से शुरू होकर दिन 10,000 तक के कमरे आपकी जेब के मुताबिक उपलब्ध हैं। लेकिन यदि हम मानसिक अस्वस्थ लोगों के लिए अस्पताल तलाश करने निकलें तो बेहद कम मिलेंगे। दिल्ली में सरकारी अस्पतालों जिसमें मानसिक रोगियों के लिए उपलब्ध हैं उनमें वीमहांस और इबहास हैं। इन दो अस्पतालों के छोड़ दें तो प्राइवेट अस्पताल में भी चिकित्सा उपलब्ध हैं लेकिन उसके खर्चें ज़्यादा हैं।
वैश्विक स्तर पर नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि विभिन्न कारणों से व्यक्ति एक्यूट एंजाइटी, दुश्चिंता और अवसाद का शिकार है। तनाव तो है ही साथ ही अकेलापन भी एक बड़ी वज़ह है कि लोग देखने में तो स्वस्थ लगते हैं लेकिन अंदर टूटे हुए और बिखरे हुए होते हैं। ऐसे लोगों को अकेला छोड़ना कहीं भी किसी भी सूरत में मानवीय नहीं माना जाएगा। गौरतलब हो कि 2007−8 में जब वैश्विक मंदी को दौर आया था तब वैश्विक स्तर पर लोग डिप्रेशन के शिकार हुए थे। लोगों की जॉब रातों रात चली गई थी। शादी के लिए तैयार लड़की ने शादी के करने से इंकार कर दिया था। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि डेंटिस्ट के पास दांत दर्द के रोगियों की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गई थी। हालांकि प्रमाणिक तौर पर आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन मानसिक तौर पर टूटे हुए और तनावग्रस्त लोगों की संख्या ऐसे अस्पतालों में बढ़ी थी। याद हो कि तब मीडिया ने अगस्त-सितंबर 2008 के बाद वैश्विक मंदी में जॉब गंवा चुके लोगों की खबरें भी छापना बंद कर दिया था। ऐसे में इस प्रकार के आंकड़े निकलाना ज़रा मुश्किल काम रहा कि कितने प्रतिशत लोगों ने मानसिक अस्थिरता की वजह से मनोचिकित्सकों की मदद ली।