केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्यों के लिए पत्थरों का टोटा
देहरादून : केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण कार्यों में पत्थरों का संकट खड़ा हो गया है। यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) विभाग को फर्श निर्माण के लिए पत्थर ही नहीं मिल रहे। केदारनाथ क्षेत्र में जो पत्थर थे, उन्हें पुनर्निर्माण के अन्य कार्यों में प्रयुक्त किया जा चुका है।
केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से फिलहाल काम तो रुका है, लेकिन अगले सीजन जब कपाट खुलेंगे तो अधिकारियों को फर्श निर्माण के लिए पत्थर नहीं मिल पाएंगे। एएसआइ देहरादून सर्किल की अधीक्षण पुरातत्वविद् लिली धस्माना इस संबंध में संस्कृति मंत्रालय को रिपोर्ट भेज रही हैं।
अधीक्षण पुरातत्वविद् धस्माना के अनुसार केदारनाथ मंदिर में पूरब व उत्तर दिशा के फर्श पर पत्थर लगाने का अधिकांश कार्य पूरा कर लिया गया है। जबकि दक्षिण व पश्चिम दिशा में पत्थर लगाने का काम अभी शुरू किया जाना है।
करीब 600 वर्गमीटर भाग पर पत्थर लगाए जाने हैं। एक पत्थर का आकार करीब डेढ़ वर्गफीट है। इस तरह 2000 से अधिक पत्थरों की जरूरत है। तभी मंदिर की सभी दिशाओं के फर्श पर पत्थर लग पाएंगे। पुरातत्व नियमों के अनुसार ऐतिहासिक धरोहरों पर वहीं सामग्री लगाई जाती है, जो पहले रही है।
इसके अनुसार फर्श निर्माण के लिए आसपास मिलने वाले पत्थरों का प्रयोग का किया, लेकिन अब आसपास के इलाके के पत्थर भी समाप्त हो चुके हैं। अन्य क्षेत्रों से पत्थर लाने के लिए काम की लागत भी बढ़ जाएगी। लिहाजा, इसका प्रस्ताव बनाकर संस्कृति मंत्रालय को भेजा जा रहा है। ताकि अगले सीजन में कपाट खुलते ही फर्श निर्माण का काम शुरू किया जा सके।
एएसआइ की अधीक्षण पुरातत्वविद् लिली धस्माना का कहना है कि केदारनाथ में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते वैसे भी काम करने अनुकूल दिन बहुत कम मिल पाते हैं। लिहाजा, समय पर पत्थरों की तलाश पूरी की जानी जरूरी है। तभी अगले सीजन में काम पूरा किया जा सकेगा।
निचले क्षेत्रों में भी होगी तलाश
एएसआइ की देहरादून सर्किल की अधीक्षण पुरातत्वविद् लिली धस्माना के मुताबिक केदारघाटी के निचले स्थानों में मंदिर में प्रयुक्त किए गए पत्थर मिल सकते हैं। ऐसे क्षेत्रों में भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। यदि पत्थर मिल पाए तो निर्माण कार्य की जटिलता कुछ कम हो पाएगी।