यह हकीकत है- पैसा दो, प्रमाण पत्र लो फिर जितना चाहो प्रदूषण फैलाओ
नई दिल्ली । गाड़ी प्रदूषण कितना भी फैलाए, निर्धारित मानकों पर खरी न उतर पाए, लेकिन फिर भी गाड़ी चलाने वालो के लिए चिंता की कोई बात नहीं है। दरअसल, उन्हें चिंता मुक्त किए रहते हैं कुछ प्रदूषण जांच केंद्र।
प्रदूषण फैलाओ
पैसा दो, प्रमाण पत्र लो, उसके बाद जितना चाहो प्रदूषण फैलाओ। यह हकीकत है उत्तरी एवं बाहरी दिल्ली के अधिकांश प्रदूषण जांच केंद्रों की। हैरानी इस बात की है कि तमाम सरकारी एजेंसियां बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए नित नए उपाय तलाश रही हैं। मगर ऐसे केंद्रों की करतूतों पर नकेल कसनेे के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि इन पर नकेल कसे बिना किए जा रहे सरकारी प्रयास बेअसर ही नजर आ रहे हैं।
जुर्माने का प्रावधान
केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, जिस किसी भी वाहन के पास वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र नहीं है उस पर जुर्माने का प्रावधान है। अधिकांश पेट्रोल पम्पों और वर्कशॉप पर प्रदूषण स्तर की जांच करने और उत्सर्जन मानकों को पूरा करने वाले वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कम्यूटरीकृत सुविधा वाले केंद्र उपलब्ध हैं।
लूटने का केन्द्र बन गए हैं प्रदूषण जांच केन्द्र
दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग द्वारा प्राधिकृत इन प्रदूषण नियंत्रण जांच केंद्रों की संख्या वर्तमान में 550 के आसपास है। मगर ज्यादातर प्रदूषण जांच केंद्र वाहन चालकों को लूटने का केन्द्र बन गए हैं। इसके लिए मशीनों के आंकड़े में आसानी से हेराफेरी भी कर देते हैं, जिसकी गाड़ी मानकों का पालन कर रही है उसे डरा देते हैं कि उत्सर्जन ज्यादा है और रास्ता भी बता देते हैं कि कुछ रुपये अतिरिक्त लगेंगे।
जारी कर दिया जाता है प्रमाण पत्र
गाड़ी वाला भी अतिरिक्त पैसे देकर जान छुड़ाने के चक्कर में रहता है। जिनकी गाड़ी मानकों पर खरी नहीं उतरती है, उन्हें भी अतिरिक्त रकम लेकर प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता है और यह वाहन उस केंद्र द्वारा अवैध तरीके से जारी वैध प्रमाण पत्र के साथ खुलेआम प्रदूषण फैलाते नजर आते हैं।
संचालकों के मन में डर नहीं
इन केंद्रों पर आईटीआई से मोटर मैकेनिक या समतुल्य तकनीकी शिक्षा में निपुण इंसान को ही इन तैनाती का प्रावधान है, कागजों में तो उनकी तैनाती हैं, लेकिन कई केंद्रों पर उन्हीं कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है जो गाड़ियों में ईंधन भरने का काम करते हैं। गलत प्रमाण पत्र जारी किए जाने की बात साबित होने पर ऐसे केंद्र को निरस्त करने का प्रावधान है लेकिन पचास हजार रुपये देकर फिर से उसे शुरू करने की दी गई सहूलियत की वजह से भी केंद्र संचालकों के मन में डर नहीं रहता है।
केवल प्रमाण पत्र ही देखते हैं ज्यादातर विभाग
प्रदूषण को रोकने की जिम्मेदारी जिन सरकारी एजेंसियों के कंधों पर है, वह केवल जांच केंद्रों द्वारा जारी प्रमाण पत्र को ही आधार मान लेती हैं। यही वजह है कि उन्हें प्रदूषण नजर नहीं आता है, जबकि केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम में यह प्रावधान है कि अगर प्रमाण पत्र होने के बावजूद वाहन प्रदूषण फैलाते हुए पाया जाता है तो उस वाहन का प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र रद कर गाड़ी एवं चालक के लाइसेंस को जब्त करने के साथ ही सात दिन के भीतर नया प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाएगा। इस आदेश का पालन करने में असफल रहने पर गाड़ी लम्बे समय के लिए जब्त की जा सकती है और चालक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।
News Source: jagran.com