कश्मीरी केसर को रास आई उत्तराखंड की आबोहवा,उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा प्रदेश
अल्मोड़ा । कश्मीरी केसर को शिवालिक की आबोहवा रास आ गई है। यही नहीं पहाड़ की मिट्टी व मौसम ने उसकी गुणवत्ता के साथ बल्ब (प्याजनुमा जड़) की बढ़वार भी बढ़ा दी है। कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) में प्रयोग के तौर पर उगाए गए केसर पर अप्रत्याशित कामयाबी से उत्साहित विज्ञानियों ने राष्ट्ररीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत उत्तराखंड को केसर उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं। परियोजना से जुड़े शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय के विज्ञानी केसर बीज (बल्ब) व तकनीक राज्य सरकार को देने के लिए तैयार बैठे हैं।
देश के हिमालयी राज्यों की बेहतरी को नित नए आयाम स्थापित कर रहे जीबी पंत राष्ट्ररीय हिमालयी अध्ययन मिशन के विज्ञानियों ने एक और कमाल कर दिखाया है। संस्थान के कोसी कटारमल स्थित प्रयोग वाटिका में दो वर्ष पूर्व किए गए अभिनव प्रयोग ने पहाड़ में केसर उत्पादन की नई उम्मीदें जगा दी हैं। बीती फरवरी मार्च में यहां खिले केसर के फूलों को सैफ्रॉन रिसर्च सेंटर (जम्मू कश्मीर) की प्रयोगशाला में भेजा गया। जहां वैज्ञानिक परीक्षण में परिणाम उम्मीद से कहीं बेहतर रहा। कोसी कटारमल में उगाए गए केसर में मौजूद प्रमुख तत्व क्रोसिन मानक 200 से 3.83 प्रतिशत तो पिकरोक्रोसीन (मानक 70) 20.23 फीसद ज्यादा पाया गया है। वहीं सैफ्रानल 20-50 प्रतिशत होना चाहिए जो 34.78 फीसद पाया गया है।
शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रो. एमएच खान की अगुवाई में जीबी पंत संस्थान के राष्टड्ढ्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की परियोजना के तहत केसर उत्पादन व उसकी गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन पर लगातार गहन शोध चल रहा। भारत में औषधीय व पोषकीय गुणों से भरपूर केसर की कीमत डेढ़ लाख रुपया प्रति किग्रा जबकि अंतरराष्टड्ढ्रीय बाजार में दो लाख रुपये तक है। अल्मोड़ा में उच्च गुणवत्ता के केसर उत्पादन से किसानों की आजीविका को नए नए पंख लग सकते हैं। इसी के मद्देनजर जिले के बिनसर (रानीखेत) व धौलादेवी क्षेत्र में कश्मीरी केसर उगाने की तैयारी है।