उगते चांद को अर्घ्य दे पति की लंबी उम्र की कामना की, बच्चों ने पटाखे फोड़े
लखनऊ । करवा चौथ पर उत्तर प्रदेश की राजधानी के आसपास वाले शहरों में आठ बजे के करीब चांद के दीदार होना शुरू हो गए। महिलाओं ने उगते चांद को अर्घ्य दे पूजा अर्चना कर पित की लंबी उम्र की कामना की। आज के पर्व पर महिलाओं ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा और चांद देखने के बाद अपने पतियों के हाथ से पानी का पहला घूंट पिया। इसके बाद दिन भर बनाई गई विभिन्न खाने पीने की डिश का स्वाद चखाष पूरे परिवार में खुशियां झूंती नजर आई। बच्चे उत्साहित होकर पटाखा और फुलझड़ी छुड़ाते नजर आए। इस मौके पर महिलाओं को अपने पतियों से एक से बढ़कर एक उपहार मिले जिनमें वस्त्र, आभूषण और गृहस्थी के सामान के अलावा शौचालय भी उपहार का हिस्सा रहे।
बागपत के पांची खासपुर गांव में दो युवकों विजय गिरी और रितेश कुमार ने अपनी पत्नियों को फूल-मालाओं से सजे शौचालय की चाबी सौंपी तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। इन युवकों ने करवाचौथ को स्वच्छता के संदेश के पर्व में तब्दील कर दिया। इस मौके पर स्वच्छ भारत मिशन के जिला समन्वयक और बाकी ग्रामीणों को भी बुलाया गया था। प्रशासन तक इसकी खबर पहुंची तो दोनों युवकों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है। दरअसल विजय गिरी और रितेश ने शौचालय निर्माण के लिए सरकारी इमदाद का इंतजार नहीं किया। हालांकि दोनों के परिवार की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन उन दोनों युवकों ने ठान लिया कि पाई-पाई जोड़कर कैसे भी शौचालय बनवाना है। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति रंग लाई और करवा चौथ से पहले उनके घरों में शौचालय बनकर तैयार भी हो गया। विजय की पत्नी ब्रजेश ने कहा कि हमारे लिए इससे बड़ा उपहार क्या होगा। रितेश की पत्नी पूनम की खुशी भी देखते नहीं बन रही थी। मौके पर ग्राम प्रधान सतीश त्यागी ने कहा कि विजय और रितेश ने गांव की इज्जत बढ़ा दी। सीडीओ बागपत चांदनी सिंह का कहना है कि पत्नियों को करवाचौथ पर शौचालय देने वाले दोनों युवकों को सम्मानित किया जाएगा। ये संदेशपरक है। हर किसी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
दूसरी ओर बस्ती जिले के गौर ब्लाक के बरहपुर गांव की पूजा के लिए यह करवा चौथ बेहद खास रहा। पति ने तोहफे में शौचालय देकर खुले में शौच व सामाजिक अपमान से उन्हें मुक्ति जो दिला दी। दरअसल तीन वर्ष पूर्व शादी के बाद पूजा पूजा ससुराल आईं तो पूरे परिवार की ओर से पूरा सम्मान मिला, लेकिन शौचालय की सुविधा न होने से वह परेशान रहने लगीं। वह पति को बार बार इसके लिए प्रेरित करती रहीं। क्योंकि शौच के लिए बाहर जाते हुए खुद को सामाजिक रूप से अपमानित महसूस करती थीं। काफी शर्मिंदगी भी होती थी, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने से शौचालय निर्माण का काम लगातार टल रहा था। कुछ दिन पूर्व व्यवस्था बनी तो मन-ही-मन तय किया कि इस करवाचौथ पर कपड़े, जेवर व इस तरह के अन्य चीजों पर कोई खर्च नहीं करेंगे। आज शौचालय के रूप में मिले उपहार को वह जिंदगी के सबसे बड़े उपहार के रूप में मान रही हैं। उन्होंने कहा कि इससे स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य की रक्षा होगी और सामाजिक अपमान से भी छुटकारा मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि करवाचौथ पर तोहफे के रूप में मिला शौचालय पूरी उम्र याद रहेगा।
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