जानिये- अरविंद केजरीवाल के एक मंत्री का पद पर बने रहना कैसे है असंवैधानिक
नई दिल्ली । लाभ का पद मामले में दिल्ली विधानसभा की सदस्यता गंवाने के बावजूद कैलाश गहलोत मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। कानून के जानकारों के अनुसार, यह असंवैधानिक है। जब तक उन्हें फिर से मंत्री पद की शपथ नहीं दिलाई जाती, वह मंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं।
संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा के अनुसार चुनाव आयोग द्वारा लाभ का पद मामले में आप के जिन 20 विधायकों की सदस्यता खारिज की गई है उनमें कैलाश गहलोत भी शामिल हैं। वह तब तक मंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकते जब तक उन्हें दोबारा मंत्री पद की शपथ नहीं दिलाई जाती। मंत्री बनने के बाद छह महीने के भीतर उन्हें विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होगी।
गौरतलब है कि पश्चिमी दिल्ली की नजफगढ़ विधानसीट से विधायक रहे कैलाश गहलोत मात्र आठ माह ही दिल्ली सरकार में मंत्री पद पर रह पाए। वह भी संसदीय सचिव बने थे। 20 विधायकों के साथ ही गहलोत की भी सदस्यता रद हो गई है। जिससे उनका मंत्री पद भी चला गया है।
वह दिल्ली सरकार में परिवहन, सूचना एवं तकनीक, प्रशासनिक सुधार, कानून एवं न्याय व प्रशासनिक मामलों के मंत्री थे। यह भी एक संयोग ही है कि जब वह अपने विधानसभा क्षेत्र नजफगढ़ में सीवर लाइन डाले जाने के कार्य का शुभारंभ करने के कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। उसी समय सदस्यता समाप्त किए की अधिसूचना जारी होने की सूचना उन्हें मिली।
यहां पर बता दें कि दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने पिछले साल 19 मई को कैलाश गहलोत और राजेंद्र पाल गौतम को उपराज्यपाल सचिवालय पर मंत्री पद की शपथ दिलाई थी। इन दोनों को मंत्री बनाए जाने की उसी दिन राष्ट्रपति की ओर से मंजूरी मिली थी। दोनों नवनियुक्त मंत्रियों को शपथ ग्रहण के तुरंत बाद केजरीवाल ने विभागों का भी वितरण कर दिया था।
यहां यह भी जानकारी दें दे कि संसदीय सचिव की नियुक्ति के मामले में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों में से केवल दो विधायकों ने ही शुरुआत में अपना जवाब दिया थी। इन दो विधायकों में कैलाश गहलोत भी शामिल थे।
विधायक प्रवीण कुमार के साथ कैलाश गहलोत ने अपने जवाब में लिखा था कि उन्होंने संसदीय सचिव के तौर पर कोई सरकारी सुविधा का इस्तेमाल नहीं किया है। उन्होंने कहा है कि ऑफिस, सैलरी, स्टाफ या गाड़ी दिल्ली सरकार से नहीं ली है।
दोनों ही विधायकों ने आयोग से यह आग्रह किया था कि हाई कोर्ट ने संसदीय सचिव की नियुक्ति को भंग कर दिया है। ऐसे में इस मामले को यहीं बंद कर देना चाहिए।