जेटली का अब एलएलपी फर्मों पर शिकंजा

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अर्थ व्यवस्था को सुधारने की जो रणनीति बनायी है उसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को आयकर की सीमा में लाना, व्यापारियों से सुनिश्चित रूप से टैक्स वसूलना और फर्जी कंपनियों पर नकेल कसना प्रमुख है। आयकर जमा करने वालों की संख्या बढ़ी है और जीएमटी ने सभी व्यापारियों को टैक्स देने के लिए मजबूतर भी कर दिया है। इसके बाद फर्जी कम्पनियों पर श्री जेटली की निगाह पड़ी है और दो लाख से ज्यादा हवाला कम्पनियों को बंद भी किया जा चुका है। अभी सरकार के सामने सीमित दायित्व साझेदारी वाली एलएलपी कम्पनियों की समस्या है। ये कम्पनियां अपनी मनमानी कर रही हैं और वित्त मंत्री इन पर ही नकेल कसने जा रहे हैं। उन्होंने स्वस्थ होते ही इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया है। करीब दो लाख से ज्यादा मुखौटा कंपनियों को बंद करने के बाद सरकार अब सीमित दायित्व साझेदारी (एलएलपी) वाली फर्मों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है। अधिकारी ने कहा कि लगातार दो साल से सालाना रिटर्न दाखिल नहीं करने वाली 7,775 एलएलपी फर्मों को नोटिस भेजे गए हैं। संबंधित क्षेत्रों में कंपनी पंजीयक भी कोई कारोबार नहीं करने वाली एलएलपी का पंजीकरण रद्द कर रहे हैं। हाल ही में मुंबई में कंपनी पंजीयक ने 1700 से ज्यादा ऐसी कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया है। इसी तरह दिल्ली में 1100 कंपनियों का पंजीयन रद्द किया गया है। पुणे, केरल, कोयंबत्तूर, छत्तीसगढ़ और चेन्नई के कंपनी पंजीयक ऐसी एलएलपी के नाम हटा रहे हैं जो किसी तरह के कारोबार से नहीं जुड़ी हैं।कंपनी पंजीयक जनवरी 2018 से ही निदेशक पहचान क्रमांक (डीआईएन) भी जारी नहीं कर रहा है। कंपनी कानून, 2013 के तहत किसी कंपनी या एलएलपी को पंजीकरण कराने के लिए डीआईएल जरूरी होती है।
कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2006 में धारा 266ए से 266जी को शामिल कर डीआईएल की अवधारणा को पहली बार लागू की गई थी। इसके अलावा सरकार ने एलएलपी नियमों में भी संशोधन कर दिया है एलएलपी के लिए साझेदारों को नियुक्त करने से पहले निर्दिष्ट साझेदार पहचान क्रमांक (डीपीआईएन) लेना जरूरी बना दिया है। डीपीआईएन डीआईएन की तरह ही है, जो कंपनी के पंजीकरण के लिए आवश्यक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रवाह पर असर पड़ेगा क्योंकि कई विदेशी फर्में भारत में एलएलपी खोलना चाहती हैं। खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर भरत आनंद ने कहा, नीति में निरंतरता होनी चाहिए। उसमें वास्तविक समस्या का समाधान होना चाहिए। अगर कुछ कंपनियां कानून का उल्लंघन करती हैं, तो केवल उन्हें ही दंडित किया जाना चाहिए।विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि एलएलपी उनके लिए पसंदीदा विकल्प होता है जो कम कठोर नियमों के तहत कारोबार करना चाहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि कई छोटी और मझोली कंपनियां एलएलपी में तब्दील हुई हैं। आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से नवंबर 2017 के दौरान 50 हजार से ज्यादा निजी कंपनियां एलएलपी में तब्दील हुई हैं। एलएलपी ऐसी कंपनी होती है जिनमें कंपनी के प्रत्येक कदम के लिए साझेदार हमेशा जिम्मेदार नहीं होते हैं यानी साझेदारों की जिम्मेदारी अपेक्षाकृत सीमित होती है। इसी तरह सरकार मुखौटा कंपनियों को बंद करने पर काम कर रही हैं क्योंकि इसकी आशंका जताई जा रही है कि कुछ बड़े कॉरपोरेट्स इसके जरिये धनशोधन करते हैं। इस मामले में सरकार ऐसी कंपनियों को खंगाल रही है जो दो या उससे अधिक समय से रिटर्न दाखिल नहीं कर रही हैं। उन्हें नोटिस भेजा गया है और फिर उनका पंजीकरण रद्द किया जा रहा है। 226,000 कंपनियों की पहली सूची में से 225,000 से ज्यादा कंपनियों को नोटिस भेजे गए हैं।पहली सूची के तहत तीन लाख से ज्यादा निदेशकों को अयोग्य करार दिया गया था, जिनमें से बाद में जरूरी जानकारी मुहैया कराने के बाद 30,000 की अपात्रता रद्द कर दी गई। ये 30,000 निदेशक किसी मुखौटा कंपनी के निदेशक नहीं थे।इस बात की भी संभावना है कि कंपनी पंजीयक के पास पंजीकृत 11 लाख कंपनियों में से करीब 5 लाख ही पूरी तरह परिचालन में हों। ऐसे में मुखौटा या डब्बा कंपनियों का पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई जारी रहेगी।

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