हिमवीरों ने भारत-चीन सीमा के शीत मरुस्थल में उगाई हरियाली
नेलांग, उत्तरकाशी : भारत-चीन सीमा का अधिकांश हिस्सा शीत मरुस्थलीय क्षेत्र है। इसे ट्रांस हिमालय इलाका भी कहा जाता है। इसी क्षेत्र में समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी भी है। 122 किलोमीटर तक फैले इस सीमावर्ती क्षेत्र में दूर-दूर तक वनस्पति का दीदार नहीं होता। बावजूद इसके आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के जवान हिमवीरों की भांति पिछले एक साल से यहां हरियाली उगाने में जुटे हैं।
इसकी गवाह बनी है चीन सीमा से लगी नेलांग चौकी, जहां विभिन्न प्रजाति के करीब 1500 पौधे मुस्कान बिखेर रहे हैं। अब हिमवीरों की तैयारी सीमा की अन्य सात चौकियों को हरा-भरा करने की है। इसके लिए पौध तैयार की जा रही है।
नेलांग से आगे पडऩे वाली चौकियों की समुद्रतल से ऊंचाई इससे अधिक है। ट्रांस हिमालय से पहले महान हिमालय आता है और ट्रांस हिमालय के बाद तिब्बत के पठार शुरू हो जाते हैं। ट्रांस हिमालय में सामान्य दिनों में भी अधिकतम तापमान मुश्किल से दस डिग्री होता है, जबकि शीतकाल में अधिकतम तापमान भी माइनस में रहता है।
अधिक ऊंचाई और वनस्पति विहीन होने के कारण यहां तेज हवाएं चलती हैं, लेकिन हवा में ऑक्सीजन की काफी कमी रहती है। ऐसे में सीमा पर तैनात जवानों को प्रकृति की इस मार से जूझना पड़ता है।
सीमा सुरक्षा के लिए नेलांग घाटी में 1964 से भारत-तिब्बत सीमा पुलिस तैनात है। 2015 में आइटीबीपी 12वीं वाहिनी के कमांडेंट केदार सिंह रावत ने वनस्पति विहीन नेलांग घाटी को हरा-भरा करने की शुरुआत की। 2016 में आइटीबीपी के हिमवीरों ने यहां सेब, स्थानीय पॉपुलर, स्प्रूस व स्थानीय मोरपंखी के करीब ढाई हजार पौधों का रोपण यहां किया।
इनमें से करीब 1500 पौधे खुद को यहां के वातावरण के अनुरूप ढाल चुके हैं। इनकी देखभाल के लिए जवानों की जिम्मेदारी तय की गई है।
12वीं वाहिनी के कमांडेंट रावत बताते हैं कि नेलांग घाटी से आने वाली जाड़ गंगा के किनारे उन्होंने पॉपुलर के पेड़ देखे थे। इसी से उन्हें ख्याल आया कि इनके पौधे जवानों की चौकियों में भी पनप सकते हैं। सो, वहां पॉपुलर की टहनियां रोपी गईं। पेड़-पौधों के लगने से नेलांग घाटी में गोरैया भी नजर आने लगी है।
सब्जी भी उगा रहे जवान
नेलांग में आइटीबीपी के जवान हरियाली के साथ सब्जी भी उगा रहे हैं। इन दिनों जवान वहां आलू, राई, मूली व बीन्स की खेती कर रहे हैं। इससे भी हरियाली और गुलजार हो रही है।