डायनासोर के काल से मौजूद फर्न को बचाने के लिए पहल
देहरादून | वनस्पति जगत में डायनासोर काल से मौजूद और अब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी फर्न प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड ने कदम बढ़ाए हैं। इस कड़ी में वन महकमा नैनीताल में गाजा और अल्मोड़ा जिले के कालिका में राज्य में पहली बार ‘फर्नेटम’ तैयार कर रहा है। इनमें फर्न की 12 प्रजातियों के 2200 पौधे लगाए जा रहे हैं।
वन संरक्षक (अनुसंधान वृत्त, हल्द्वानी) संजीव चतुर्वेदी ने इस योजना का खाका खींचा है। उन्होंने बताया कि पांच साल के भीतर यह प्रोजेक्ट पूरी तरह आकार ले लेगा।
पर्णांग अथवा फर्न एक अपुष्पक पौधा है, जो टोरिडोफाइटा जगत से संबंधित है। इसे भी अन्य वनस्पतियों की भांति जड़, तना और पत्ती तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है, लेकिन इसमें फूल नहीं लगते। यह बीजाणुधानियों (स्पोर) से बीजाणु पैदा करता है और इसी से नए पौधे प्राकृतिक रूप से उगते हैं। उत्तराखंड में भी फर्न की विभिन्न प्रजातियां हैं, लेकिन बदलते वक्त की मार इन पर भी पड़ी है।
कुछ प्रजातियां ऐसी हैं, जो मानवीय हस्तक्षेप के कारण विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। असल में फर्न का उपयोग औषधि में भी होता है, जिसमें एडिएंटम प्रजाति मुख्य है। इसे हंसराज और मयूरशिखा नामों से भी जाना जाता है। इसके अलावा कुछ प्रजातियों का इस्तेमाल आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में भी किया जाता है।
यही नहीं, कुछ प्रजातियों का उपयोग भोजन, सजावट आदि में भी किया जाता है। ऐसे में लगातार हो रहे अनियोजित विदोहन से इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
इसे देखते हुए वन महकमे के अनुसंधान वृत्त के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने राज्य के मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली फर्न के संरक्षण-संवद्र्धन का खाका खींचा। क्षतिपूरक वनीकरण प्रबंधन अभिकरण (कैंपा) की मदद से इस योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है।
वह बताते हैं कि इसके तहत गाजा और कालिका में 0.5-0.5 हेक्टेयर नमी वाले क्षेत्र में फर्न की 12 प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है। प्राकृतिक वासस्थलों से राइजोम एकत्रित कर इसके पौधे लगाए जाएंगे। पांच साल में यह दोनों फर्नेटम लहलहा उठेंगे। इसके साथ ही यहां फर्न पर शोध कार्य भी किए जा सकेंगे।
बेहद उपयोगी है फर्न
आइएफएस संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि फर्न बेहद उपयोगी है। यह जमीन में नाइट्रोजन की कमी को तो पूरा करता ही है, आर्सेनिक जैसी घातक धातुओं को हटाने का कार्य भी करता है। साफ है कि यह भूमि की उर्वरता बढ़ाने में बड़ा सहायक है।