उत्तराखंड में विश्व बैंक की मदद से थमेगा मानव-वन्यजीव संघर्ष
देहरादून : 71 फीसद वन भू-भाग वाले उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। फिर चाहे राज्य का पर्वतीय हिस्सा हो अथवा मैदानी। दोनों ही जगह यह ‘जंग’ चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। इसमें मानव व वन्यजीव दोनों को ही जान देकर कीमत चुकानी पड़ रही है।
इस संघर्ष को थामने में अब विश्व बैंक मददगार साबित होगा। असल में उत्तराखंड वन महकमे के लिए विश्व बैंक ने एक हजार करोड़ की धनराशि मंजूर की है। सरकार ने इसमें से डेढ़ सौ करोड़ रुपये मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने के उपायों पर खर्च करने का निश्चय किया है। इस कड़ी में संवेदनशील क्षेत्र चिह्नित किए जा रहे हैं।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में देखें तो राज्य का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां यह दिक्कत न हो। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वर्ष 2000 के बाद राज्य गठन से अब तक 600 से अधिक लोगों की जान वन्यजीवों के हमलों में गई है और लगभग 1200 घायल हुए हैं। खासकर गुलदारों ने अधिक नींद उड़ाई है।
वन्यजीवों के हमलों की 80 फीसद घटनाएं गुलदारों की हैं। ये आबादी वाले क्षेत्रों में ऐसे घूम रहे, मानो पालतू जानवर हों। इसके अलावा हाथी, भालू, बाघ जैसे जानवरों के हमले भी तेजी से बढ़े हैं। यही नहीं, सूअर, बंदर, लंगूर, नीलगाय, हिरन जैसे जानवर फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं।
मानव और वन्यजीवों के बीच छिड़ी इस जंग को थामने के लिए महकमे की कसरत अभी तक परवान नहीं चढ़ पाई है। यही नहीं, वन सीमा पर सोलर फैंसिंग और खाई खोदने जैसे दूसरे उपायों के लिए बजट की कमी आड़े आ रही है। ऐसे में अब विश्व बैंक ने उम्मीद की किरण जगाई है।
वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के मुताबिक विश्व बैंक की ओर से वन महकमे के लिए एक हजार करोड़ की राशि स्वीकृत किए जाने से बड़ी राहत मिली है। इसमें से 150 करोड़ की राशि से मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने के मद्देनजर वन सीमा पर प्रभावी उपाय करने के साथ ही वन्यजीवों को जंगल में रोकने को वासस्थल विकास पर फोकस किया जाएगा। जरूरत पडऩे पर इस राशि को बढ़ाया भी जा सकता है। इसके अलावा 150 करोड़ वनीकरण, 150 करोड़ जल संरक्षण, 150 करोड़ इको टूरिज्म के साथ ही शेष राशि अन्य विभागीय कार्यों में व्यय होगी।