हिन्दू धर्म के गौरव आदि शंकराचार्य का सम्मान
आधुनिक भारत के निर्माता एवं भारतीय समाज, अध्यात्म, संस्कृति के अविभाज्य आदि शंकराचार्य पूरे विश्व में अद्वैत वेदान्त के पुनर्प्रतिस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। हम जिस धर्म यानि हिन्दू के जिस नाम से भारत को जानते हैं, समझते हैं उसे इन्हीं शंकराचार्य द्वारा पुनर्स्थापित किया गया है। समस्त भारत की सभ्यता को यदि दो स्पष्ट कालखण्डों में बांटकर देखें तो पहला खण्ड शंकराचार्य के पूर्व और दूसरा खण्ड शंकराचार्य के बाद का भारत है। सभ्यता के जितने भी सेतु अभी तक भारतीय समाज ने स्थापित किये हैं उनमें सबसे बड़ा योगदान जिसे आज भी देखा जा सकता है शंकराचार्य की ही देन है। आचार्य शंकर को भगवान शिव का अवतार भी कहा जाता है।
एक समय ऐसा था जबकि पूरा भारत म्लेच्छ संस्कृति से ओतप्रोत बुद्धिज्म के बिगडे हुए स्वरूप की गिरफ्त में था। चारों ओर जन समुदाय त्राहिमाम.. त्राहिमाम पुकार रहा था। हिंसा से पूरी मानवता त्रस्त हो रही थी और धर्म के नाम पर पाखण्ड ने सम्पूर्ण समाज को भयाक्रान्त कर रखा था। ऐसे समय में छठी शताब्दी में सुदूर दक्षिण भारत के एक छोटे से गांव में शंकर नामक व्यक्ति का जन्म होता है। कहते हैं कि जब इनकी उम्र मात्र आठ वर्ष की थी, तब इन्हें वेद कंठस्थ हो गये थे और भगवत गीता सहित भारतीय शास्त्रों का गहरा ज्ञान इन्हें प्राप्त हो गया था। ऐसा माना जाता है कि भारत की अवस्था को देखकर भगवान शिव ने स्वयं धरा पर अवतार लिया था। इनकी मेधाशक्ति को देखकर पूरा भारत उस समय आश्चर्यचकित हो गया, जबकि उस समय के महान विद्वान मंडन मिश्र के साथ इनका शास्त्रार्थ हुआ जिसमें वयोवृद्ध प्रकाण्ड विद्वान मंडन मिश्र पराजित हुए और उसके बाद शंकर नामक यह व्यक्ति आचार्य शंकर के नाम से विख्यात हो गये।
भारत में धर्म की अवस्था बहुत सोचनीय थी, दयनीय थी। इस अवस्था को देखकर आचार्य शंकर ने पूरे भारत का पैदल भ्रमण आरम्भ किया और धर्म की ज्योति जलाने का अविस्मरणीय सद्प्रयास आरम्भ किया। यह एक ऐसा यज्ञ था जिसकी कोई पूर्णाहुति नहीं थी, यह यज्ञ आज भी अनवरत चल रहा है। आचार्य को संभवतः पहले से ही ज्ञात था कि उनके पास कम समय है लेकिन जितना समय सृष्टि के द्वारा उन्हें मिला है, उतने ही समय में उन्हें कार्य पूर्ण करना था और उन्होंने ऐसा करने में सफलता भी पाई। समय और संसाधनों के अभाव में भी उन्होंने मृतप्राय भारत की आत्मा को झकझोर कर जगा दिया और हिन्दू नव जागरण का शंखनाद कर दिया। पूरे भारत में अनेकों मंदिरों का जीर्णोद्धार किया और देश की चार दिशाओं पूरब में जगन्नाथपुरी गोवर्धनपीठ (उडीसा), पश्चिम में द्वारिकापुरी शारदामठ (गुजरात), उत्तर में बद्रीनाथ में ज्योतिर्पीठ (उत्तराखण्ड) और दक्षिण में श्रृंगेरी मठ शंकराचार्य पीठ की स्थापना की। इतना ही नहीं भारतीय समाज को एकसूत्र में बांधने के लिए चारों पीठों के स्थानीय निवासियों को दूसरी पीठों में स्थापित किया, जिससे देश के चारों ओर से लोग एक दूसरे की संस्कृति, भाषा और रीति-रिवाजों को समझ सकें और एक-दूसरे का सम्मान कर सकें। एकता के सूत्र में भारत को बांधने वाले और सभी भेदों से मुक्त करके नव हिन्दू समाज की स्थापना करने वाले, अध्यात्मक के मार्ग पर संन्यासियों के दशनाम गोस्वामी समाज (सरस्वती, गिरि, पुरी, बन, भारती, तीर्थ, सागर, अरण्य, पर्वत और आश्रम) की स्थापना करके हिन्दू धर्मगुरु के रूप में हिन्दुओं के प्रचार-प्रसार व संरक्षण का कार्य सौंपने वाले महान आचार्य को हम हिन्दू भूलने लगे थे।
जो समाज अपने संस्थापकों और आदर्शों को भूलने लगता है उसका पतन होते देर नहीं लगती है। हिन्दुओं ने पिछली कई सदियों से अपने आदि आचार्यों को भूलना आरम्भ कर दिया था और पश्चिम के बहाव में आकर अपनी जड़ों को ही काटना आरम्भ कर दिया था। इस काम में हमारे वामपंथी विचारकों और पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों ने बहुत योगदान दिया। सम्प्रदाय विशेष का तुष्टीकरण करके हिन्दू समाज को पतन की ओर उन्मुख कर दिया था। संन्यासियों के किसी भी प्रयास को सरकारों ने सफल नहीं होने दिया। इस दुःखद परिस्थिति से निकालने के लिए आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा साधु समाज हृदय से अभिनन्दन करता है कि उन्होंने पहली बार केदारनाथ की पवित्र भूमि पर अपने हिन्दू धर्म के पुनर्संस्थापक आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया और उनके योगदान को एक बार फिर से दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत किया।
वर्ष 2021 के अंतिम चरण में हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री ने साहसिक कार्य किया है जिसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं। हम संन्यासियों के लिए अद्भुत क्षण हैं गौरव के क्षण के हैं कि हमारे आदि शंकराचार्य जिन्होंने हमारे सम्प्रदाय की नींव रखी, भारत को म्लेच्छों के आचरण से बचाया और मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में पूरे भारत को एकसूत्र में बांधने का महनीय कार्य किया है आज उनकी प्रतिमा केदारनाथ में स्थापित की गई है। आज से पहले किसी भी सरकार ने, किसी भी प्रधानमंत्री ने यह नहीं सोचा कि समूचे विश्व में अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करने वाले आदि शंकराचार्य की कोई स्मृति स्थापित की जाय। पहली बार कोई प्रधानमंत्री अपने धर्म को लेकर इतने संवेदनशील हुए कि उन्होंने हिन्दू धर्म को यह गौरव के क्षण दिये।
जिस संन्यासी ने पूरे देश को एकरस करने के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। अपने पूरे जीवन काल में एक दिन भी विश्राम नहीं किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैदल भ्रमण करके जटिल परिस्थितियों का सामना करते हुए वेदों का उद्धार किया, शास्त्रों को स्थापित किया पुरातन ज्ञान-विज्ञान को नया स्वरूप प्रदान किया, वेदान्त दर्शन की स्थापना की ऐसे कालजयी महापुरुष को कोई समाज कैसे भुला सकता है। लेकिन आजादी के सत्तर वर्षों के कालखण्ड में ऐसा कुचक्र रचा गया कि लोग अपने आराध्य देव को ही भुलाने लगे थे। लेकिन धन्यवाद सृष्टि के मूल तत्व का कि जिन्होंने नरेन्द्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री को भेज दिया जिन्होंने सदियों से चले आ रहे संघर्ष श्रीराम जन्मभूमि के विवाद को शान्तिपूर्वक सुलझा दिया और अब आजादी के 74 वर्ष बाद अपने आराध्य देव आचार्य शंकर की प्रतिमा स्थापित करके एक और कीर्तिमान प्रस्तुत किया है। सभी साधु संतों को इस समय एक स्वर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का धन्यवाद देना चाहिए। हम अपनी ओर से सम्पूर्ण समाज की ओर से प्रधानमंत्री का हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। हम एक समाज के रूप में तभी सफल हो सकते हैं जबकि हम अपने पूर्वजों को सम्मान देना सीख जायेंगे। जब तक हम अपने पूर्वजों का, अपने संस्थापकों का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक हम कभी एक समाज के रूप में सफल नहीं हो सकते। उनके योगदान को भुलाकर हम अपने पतन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सराहनीय योगदान पर हम सबको उनका हृदयाभिनन्द करना चाहिए। उनका पूरा साथ देना चाहिए जिससे कि वह भारत के खोये हुए सम्मान को पुनर्स्थापित कर सकें। इतना याद रखो, यदि अतीत का गौरव रहेगा तो ही हम भविष्य की ऊंची इमारत तैयार कर सकेंगे।
-स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती ‘बापू’