सवर्ण आंदोलन कड़वी यादें
दुर्भाग्य से अब ऐसा ही हो रहा है। जाट आंदोलन, गुर्जर आंदोलन, किसान आंदोलन और अभी हाल में हुआ सवर्ण आंदोलन कड़वी यादें ज्यादा छोड़कर गया है। कांग्रेस समेत 21 राजनीतिक दलों का 10 सितम्बर को आहूत किया गया भारत बंद भी कुछ ऐसे तीखे फल दे गया, जिन्हें आसानी से भुलाया नहीं जा सकेगा। बिहार में इसी भारत बंद के दौरान इलाज के आभाव में दो साल की बच्ची की मौत हो गयी। विपक्षी एकता कायम होगी अथवा नहीं, यह तो 2019 के चुनाव तक मालूम ही हो जाएगा लेकिन बिहार के जहानाबाद की वह दो साल की बच्ची 2018 की दीपावली नहीं मना पायी।कांग्रेस समेत कुल 21 राजनीतिक दलों ने पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों, महंगाई और राफेल डील के खिलाफ भारत बंद का आयोजन किया। भारत बंद के दौरान देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुए। कई जगह प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। बेगूसराय में बंद समर्थकों ने ट्रेन रोककर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। उस ट्रेन में कौन किस जरूरत से जा रहा होगा, इसकी रंचमात्र चिंता भी प्रदर्शनकारियों ने नहीं की। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में लगभग 20 वामपंथी कार्यकर्ता दुर्गापुर रेलवे स्टेशन में जबरन घुसने का प्रयास कर रहे थे, सुश्री ममता बनर्जी की सरकार ने उन्हें हिरासत में लिया। बिहार की राजधानी पटना में हाईकोर्ट के सामने तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बीच हाईकोर्ट जज को अंदर जाने से रोका गया। आरोप है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जज की गाड़ी के सामने हंगामा किया। यहां पर भाजपा की सहयेगी पार्टी जद(यू) की सरकार है और नीतीश कुमार जी के प्रशासन से यह उम्मीद नहीं थी कि हाईकोर्ट के सामने भी सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर रहेगी। बिहार के ही जहानाबाद में दो साल की बच्ची की तबियत बहुत खराब थी। उसके परिवार वालों का कहना है कि भारत बंद के कारण कोई वाहन नहीं मिला, इस लिए बच्ची का इलाज नहीं हो पाया और उसकी मौत हो गयी। जहानाबाद के एसडीओ कहते हैं कि परिजनों ने इलाज में देरी कर दी।इस भारत बंद के सियासी मतलब भी निकाले जा रहे हैं। बिहार की ही हमने बात की तो नीतीश कुमार की सरकार ने बंद समर्थको पर कड़ी कार्रवाई से परहेज किया। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की मिलीजुली सरकार है। यहां पर संवेदनशील समझे जाने वाले पुणे में एक स्कूल बस पर हमला किया गया। स्कूल प्रशासन का कहना है कि जिस दौरान सुबह बस बच्चों को लेकर स्कूल जा रही थी उस दौरान ये हमला हुआ। इसका वीडियो भी जारी हुआ है और उसके अनुसार स्कूल बस संस्कृति स्कूल की है। प्रदर्शनकारी बसों के शीशे तोड़ते नजर आ रहे लेकिन उन्हें मना करने वाली पुलिस दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ती है। राज ठाकरे की मनसे के कार्यकर्ता ज्यादा उपद्रव करते नजर आये। मुंबई में मनसे कार्यकर्ताओं ने जबरन दुकानें बंद करायीं। बंद के दौरान अराजकता करने वालों और आम जनता को परेशान करने वालों पर सरकार ने सख्ती क्यों नहीं की? यह सवाल कम महत्वपूर्ण नहीं है। देश भर में बंद के दौरान उपद्रव करने में कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया, ये आंकड़े भी बाद में पता चल जाएंगे। लेकिन सरकारी सम्पत्ति को जिन लोगों ने भारत बंद के नाम पर क्षति पहुंचाई है, उनसे उसकी भरपाई करवाई जानी चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैलाश मानसरोवर से जल लाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर चढ़ाया। बापू को श्रद्धांजलि देने के बाद विपक्ष का मार्च शुरू हुआ था। राष्ट्रपिता की समाधि पर भी राहुल
गांधी को यह शिक्षा नहीं मिली कि वे सभी लोगों से अपील करते कि कहीं भी तोड़-फोड़ नहीं की जाएगी, ट्रेन-बसें नहीं रोकेंगे और जरूरी कार्य से जाने वाले को किसी प्रकार भी परेशानी नहीं होने देंगे। भारत बंद और प्रदर्शन के दौरान इस तरह का आचरण किया जाए तो उसका जनता पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। गांधी जी का यही तरीका था। अब, भारत बंद के माध्यम से विपक्ष की एकता भी देखें तो लगता है कि न खुदा ही मिला न बिसाले सनम। बंद के चलते जिनको परेशानी हुई, उन्हें तो पीड़ा पहुंची ही है लेकिन सड़क पर अधूरा विपक्ष दिखाई पड़ा। उत्तर प्रदेश में जहां विपक्षी एकता की धमक सबसे ज्यादा सुनाई पड़ती है, वहीं दोनों बड़ी पार्टियों-सपा और बसपा ने भारत बंद से दूरी बनाए रखी। राहुल गांधी को 21 विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला है लेकिन कई सहयोगी दल के नेता नजर नहीं आये। सपा और बसपा का कोई भी नेता दिल्ली में राहुल गांधी के मंच पर नजर नहीं आया जबकि शरद पवार, शरद यादव जैसे नेता भी धरना-प्रदर्शन में मौजूद रहे। यह अलग बात है कि अखिलेश यादव के निर्देश पर सपा के कार्यकर्ता विभिन्न प्रदेशों में जिला व तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करते देखे गये। बसपा ने भारत बंद का समर्थन किया लेकिन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बसपा कार्यकर्ता राहुल गांधी के साथ मंच पर मौजूद नहीं थे। श्री सतीश मिश्र की अनुपस्थिति लोगों को चौंका रही थी इसी प्रकार कांग्रेस का साथ बीजू जनता दल, टीआरएस और अन्ना द्रमुक ने भी नहीं दिया है। राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में भी इन राजनीतिक दलों ने विपक्ष का साथ नहीं दिया था और अप्रत्यक्ष रूप से सत्तारूढ़ दल का ही साथ दिया था।