अलकनंदा से देवप्रयाग तक
युगों की तपस्या के बाद मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ। धरती पर फैले अकाल, कष्टों और पाप को मिटाने के लिए मां गंगा धरती पर लायी गईं थीं। भगवान शंकर की जटाओं से निकल कर इनके पवित्र जल ने धरती को पावन कर दिया। हिमालय पर्वत की चोटी गंगोत्री से भागीरथी का उद्गम हुआ है। अलकनंदा से देवप्रयाग में मिलने के बाद ये मां गंगा के रूप में दर्शन देती हैं। इनकी महिमा का वर्णन पुराणों शास्त्रों में दिया गया है। बड़ी ही सुंदरता से इनके संपूर्ण स्वरुप को शब्दों में पिरोकर चित्रित किया गया है।
धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भूलवश राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान कर दिया था जिससे कुपित होकर उन्होंने सभी राजकुमारों को श्राप दे दिया और वे जलकर भस्म हो गए। जब राजा सगर को ये पता चला तो उन्होंने क्षमा याचना की और उनकी मुक्ति का मार्ग पूछा, इस पर कपिल मुनि ने कहा कि श्राप का विफल होना तो संभव नहीं है, किंतु यदि स्वर्ग से पुण्यसलिला मां गंगा को धरती पर ले आया जाए तो उनके जल से ही इनका उद्धार हो सकता है। इस पर उन्होंने मां गंगा को लाने के लिए कठिन तप किया, किंतु सफल नहीं हुए। इसके पश्चात भागीरथ ने मां गंगा को लाने का प्रण लिया और घोर तप किया। इससे मां गंगा प्रसन्न हुईं और इसी वजह से भी उन्हें भागीरथी कहा जाता है।
इसी स्थान पर गंगा सागर से मिलीं जिसकी वजह से इस स्थान का नाम ही गंगासागर पड़ गया। गंगा का जल पड़ते ही राजकुमारों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। यहां समीप ही कपिल मुनि का आश्रम भी बना हुआ है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि गंगासागर के जल में एक बार डुबकी लगाने का पुण्य अश्वमेध यज्ञ के समान है।
हालांकि यहां की यात्रा करना अत्यंत ही कठिन है। आमतौर पर यहां का मौसम बिगड़ जाता है जिसकी वजह से यहां आपदा प्रबंधन के इंतजाम भी किए जाते हैं। समीप ही सुंदरवन भी है जिसका 51 प्रतिशत हिस्सा बांग्लादेश में है। साल में एक बार जनवरी माह में यहां समीप ही मेला भी लगता है अस्थायी टेंट आदि लगाए जाते हैं जो कि प्रायः खराब मौसम की वजह से उड़ जाते हैं। इसी वजह से भी इस यात्रा को बेहद ही कठिन बताया गया है। इस तीर्थ स्थल के बारे में कहा जाता है- बाकी तीरथ चार बार, गंगा सागर एक बार।
ऐसा भी कहा जाता है कि किसी जमाने में यहां लोग तब ही यात्रा के लिए निकलते थे जब उनकी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं या ऐसा भी कहा जा सकता है कि बुजुर्गों के यहां से वापस आने की उम्मीद न के बराबर ही होती थी। तब टेक्नालॉजी भी इतनी विकसित नहीं थी, किंतु अब हालत अलग है जबकि यहां का मौसम और थोड़े-थोड़े देर में आने वाले तूफान अब भी खतरा बनाए रहते हैं।