आबादी के निकट सिमटने के बावजूद जंगल के क्षेत्र में इजाफा
देहरादून : भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की रिपोर्ट उत्तराखंड के लिए चिंता और राहत दोनों लेकर आई है। चिंता इस बात की कि राज्य के 13 में से आठ जिलों में वन क्षेत्रफल कम हुआ है, जबकि कुल वन क्षेत्रफल की बात करें तो राज्य के वनों में 23 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
राज्य में अति सघन वन क्षेत्र (वेरी डेंस फॉरेस्ट) व खुले वन (ओपन फॉरेस्ट) में बढ़ोतरी हुई, जबकि आबादी के करीब वाले मध्यम सघन वन (मॉडरेट डेंस फॉरेस्ट) घटे हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की रिपोर्ट में यह बात सामने आई। वन क्षेत्रों में आया यह अंतर वर्ष 2015 से 2017 के मध्य का है।
एफएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार हरिद्वार, चमोली, उत्तरकाशी, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चंपावत में वन क्षेत्रफल में 119 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। जबकि पौड़ी जिले में रिकॉर्ड स्तर पर 76 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्रफल में इजाफा दर्ज किया गया।
कुल वन क्षेत्र में इजाफे में पौड़ी का भी बड़ा योगदान रहा। इसके साथ ही पिछली रिपोर्ट में जहां वन की हिस्सेदारी कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में 45.32 फीसद थी, वह भी बढ़कर 45.43 फीसद हो गई है। यानी वनों ने धरातल पर 0.11 फीसद का विस्तार भी किया है।
सूचीबद्ध वन घटे, बाहरी क्षेत्रों में बढ़े
वैसे तो राज्य में सूचीबद्ध वन क्षेत्रों में 49 वर्ग किलोमीटर की कमी पाई गई, लेकिन बाहरी क्षेत्रों के वनों में भारी इजाफा होने से कुल क्षेत्रफल बढ़ गया। यही कारण है कि वनों का कुल क्षेत्रफल 23 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया। बाहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में निजी वन भी हैं और सूचीबद्ध क्षेत्रों में अधिकांश सरकारी वन हैं।
इस पर प्रमुख वन संरक्षक डॉ. जयराज का कहना है कि बहुत संभव है कि वनों का बड़ा हिस्सा डीनोटिफाइड हुआ हो। हालांकि एफएसआइ की विस्तृत रिपोर्ट देखकर की स्थिति साफ हो पाएगी।
वन क्षेत्रों में आया बदलाव
-अति सघन वन क्षेत्रफल 165 वर्ग किलोमीटर बढ़ा।
-खुले वन क्षेत्रों में 636 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
-झाड़ीनुमा वनों में 87 वर्ग किलोमीटर का विस्तार हुआ।
-मध्य सघन वन क्षेत्रों में 778 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।
2000 मीटर की ऊंचाई तक घटे वन
जिन मध्यम सघन वनों के क्षेत्रफल में भारी गिरावट दर्ज की गई है, उनमें हर ऊंचाई के हिसाब से बात करें तो यह गिरावट 2000 मीटर तक की ऊंचाई में सबसे अधिक है। इसी ऊंचाई तक वाले भूभाग में ही सबसे अधिक आबादी है और विकास कार्य भी यहीं हो रहे हैं। हालांकि 2000 से 3000 मीटर तक की ऊंचाई वाले वनों के क्षेत्रफल में कुछ सुधार दर्ज किया गया है।