पूंजीगत खर्च में टॉप गियर में हरियाणा, बुनियादी ढांचे के विकास पर फोकस
चंडीगढ़। पिछली हुड्डा सरकार में लगातार दो साल तक पूंजीगत खर्च में पिछड़ने के बाद अब हरियाणा में विकास की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी है। टॉप गियर ऐसा कि बीते एक साल में ही पूंजीगत व्यय को दोगुणा कर दूसरे राज्यों को मीलों पीछे छोड़ दिया गया।
हुड्डा के मुख्यमंत्रित्व काल में 2013-14 और 2014-15 में लगातार दो साल प्रदेश के पूंजीगत खर्च में भारी गिरावट आई। इसके बाद पहली बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भाजपा ने पूंजीगत खर्च बढ़ाने पर फोकस कर दिया। इसकी नतीजा यह हुआ कि विकास की तस्वीर बदलने लगी है। मौजूदा प्रदेश सरकार ने न सिर्फ निवेश के क्षेत्र में होने वाले खर्च में पैसा बढ़ाया, बल्कि सामाजिक क्षेत्र पर भी खूब खर्च किया।
विधानसभा में सन 2015-16 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए पूंजीगत व्यय के अनुपात में सुधार लाने की घोषणा की थी। इस दिशा में काम भी खूब हुआ। सन 2014-15 के 4558.40 करोड़ के पूंजीगत खर्च के मुकाबले 2015-16 में यह धनराशि 48.5 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 6769. 30 करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
सार्वजनिक क्षेत्र के पांच उपक्रमों हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, हरियाणा राज्य औद्योगिक आधारभूत संरचना विकास निगम, कृषि विपणन बोर्ड, हरियाणा वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन और बिजली कंपनियों में बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने के लिए 5006.54 करोड़ अलग से खर्च किए गए। इस तरह 2015-16 में कुल पूंजीगत खर्च 11 हजार 776 करोड़ पहुंच गया।
2016-17 के बजट में हरियाणा का पूंजीगत खर्च 9.6 फीसद बढ़कर 7432 करोड़ रुपये हो गया है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के पांचों उपक्रमों द्वारा 6990.38 करोड़ अलग से खर्च किए गए। कुल पूंजीगत खर्च 15 हजार 779 करोड़ पहुंच गया जो पिछले साल की तुलना में 34 फीसद अधिक रहा। 2017-18 के बजट में सरकार ने पूंजीगत खर्च को करीब दोगुना करते हुए 14 हजार 932 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव रखा है। करीब पांच हजार करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर खर्च होंगे।
ऐसे समझिए, क्या होता है पूंजीगत खर्च
सरकार के खर्च को दो हिस्सों बांटा जाता है। पूंजीगत व्यय और राजस्व व्यय। सरकार की परिसंपत्तियों में वृद्धि करने वाले खर्चों को पूंजीगत व्यय माना जाता है जैसे पुल, सड़क निर्माण इत्यादि। राजस्व व्यय ऐसे खर्चे होते हैं जिनसे न सरकार की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और न ही आय जैसे वेतन और पेंशन इत्यादि।
News Source: jagran.com