‘केदारनाथ’ फिल्म में आस्था के दर्शन, रोमांच की अनुभूति
रुद्रप्रयाग : हिंदी फीचर फिल्म ‘केदारनाथ’ की शूटिंग के लिए मुंबई से सोनप्रयाग पहुंची फिल्म यूनिट इन दिनों शूटिंग की प्लानिंग में व्यस्त है। फिल्म की कहानी केदारनाथ यात्रा के साथ ही वर्ष 2013 की आपदा पर केंद्रित है। केदारपुरी, त्रियुगीनारायण, तुंगनाथ, सोनप्रयाग, चोपता जैसे धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों पर शूटिंग होने से जहां फिल्म में आस्था के दर्शन होंगे, वहीं केदारघाटी के नैसर्गिक सौंदर्य के बीच नायक-नायिका का रोमांस भी देखने को मिलेगा। रोमांच तो खैर पूरी फिल्म में है ही। फिल्म को लेकर पूरी यूनिट काफी उत्साहित हैं। खासकर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत व अभिनेत्री सारा अली खान का उत्साह तो देखते ही बनता है।
शूटिंग के लिए मुंबई से आया 250 सदस्यीय दल पिछले चार दिन से सोनप्रयाग से दो किमी पहले रामपुर में ठहरा हुआ है। शूटिंग आगामी तीन सितंबर से शुरू होनी है। इसके लिए फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर स्टाफ के साथ लोकेशन तलाशने में व्यस्त हैं। इसके तहत चार दल रोजाना विभिन्न स्थानों पर जाकर शूटिंग की तैयारियों का जायजा लेने के साथ सैट निर्माण का कार्य भी देख रहे हैं। शाम को बैठक में इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
फिल्म की कहानी कुछ यूं है। स्थानीय एक नवयुवक गौरीकुंड-केदारनाथ मार्ग पर डंडी मजदूर का काम करता है। एक दिन वह डंडी में यात्री को लेकर केदारनाथ जा रहा होता है कि इसी बीच आपदा आ जाती है। आपदा में पूरा पैदल मार्ग तहस-नहस हो जाता है। बाबा केदार के दर्शनों को आई एक लड़की भी इस सैलाब में फंस जाती है। पहाड़ का यह नवयुवक खुद को जोखिम में डालकर उसकी जान बचाता है।
बस! यहीं दोनों के बीच प्यार का अंकुर फूटता है। फिल्म के प्रोड्यूसर अमित मेहता बताते हैं कि यहां की भौगोलिक परिस्थितियां काफी विकट हैं। ऐसे में शूटिंग करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। इसके लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए जा रहे हैं। उम्मीद है कि यह फिल्म सुपरहिट साबित होगी।
केदारनाथ आपदा पर एक नजर
लगातार हो रही भारी बारिश के चलते वर्ष 2013 में 16-17 जून को केदारनाथ के ऊपर चौराबाड़ी ताल फट गया था। इससे केदारघाटी में भारी तबाही मची। केदारपुरी में मंदिर को छोड़ 90 फीसदी भवन मलबे में दब गए, जबकि रामबाड़ा का पूरी तरह अस्तित्व ही मिट गया। इसके अलावा गौरीकुंड, सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, विजयनगर आदि कस्बों में भी सैकड़ों घर, होटल, लॉज, धर्मशाला, स्कूल, अस्पताल नेस्तनाबूद हो गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आपदा में पांच हजार से अधिक लोग मौत के आगोश में समा गए थे। किसी भी धार्मिक स्थल पर दुनिया में अपनी तरह की यह सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा थी।