एकता और भाईचारे का पैगाम लाई ईद
सभी त्योहार हमें अच्छी बातें सिखाते हैं, विशेष रूप से समाज को सद्भाव और भाईचारे से जोड़े रहते हैं। अफसोस यह कि त्योहारों के संदेश को हम समझ नहीं पाते हैं। ईद-उल-फितर अर्थात ईद ऐसा ही त्योहार है जो हमारे देश में 24 या 25 मई को मनायी जाएगी। यह त्योहार चांद देखने के बाद मनाया जाता है। ईद की खुशियां छलक-छलक पड़ती हैं। इस बार सामूहिक रूप से न तो नमाज आदा की गयी और न सभी लोग मिलकर इफ्तारी कर सकें। ईद पर भी सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर हम एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देंगे और यह महसूस करेंगे कि हम एक दूसरे से गले मिल रहे हैं। भारत में सभी सम्प्रदाय के लोग ईद मनाते हैं, जबकि पूरे विश्व में लाखों मुसलमान ईद-उल-फितर के त्योहार को महान धार्मिकता के साथ मनाते हैं। वास्तविक त्यौहार से पहले, हर एक धर्मार्थ मुसलमान पूरे महीने के लिए उपवास करता है। इस महीने को रमजान के महीने के रूप में जाना जाता है, जो मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वे इस महीने उपवास करते हैं ताकि उनकी आत्मा शुद्ध हो। जमात वे हर दिन पांच बार प्रार्थना करते हैं और गरीबों और जरूरतमंदों को भीख और दान देते हैं। मुसलमान अपने सहरी खाते हैं जो सूर्योदय से पहले होती है। शाम को रोजा तोड़ते हैं जो सूर्यास्त के बाद है। दिन के दौरान वे पानी भी नहीं पीते हैं। रमजान के महीने के आखिरी दिन, मुसलमान उत्सुकता से चंद्रमा की आकाश में आने की प्रतीक्षा करते हैं। ईद का उत्सव चाँद की उपस्थिति पर निर्भर करता है। आईडी चंद्रमा के अगले दिन मनाया जाता है। इस बार चांद के अनुसार 24 या 25 मई को ईद मनायी जाएगी।ईद के दिन हर कोई जल्दी स्नान करता है और निकटतम मस्जिद या ईद-गाह से मिलने जाता है ताकि सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए धन्यवाद की प्रार्थना हो। उसके बाद वे एक दूसरे को गले लगाते हैं और बधाई देते हैं। इस दिन अमीर और गरीब के बीच कोई अंतर नहीं है। भाई की भावना हर दिल में प्रचलित है घर पर वे भव्य भोज में भाग लेते हैं वे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यंजन का आदान-प्रदान करते हैं। सभी त्योहारों में शायद एकमात्र त्योहार है जो बलिदान और जीवन की शुद्धता पर सबसे बड़ा महत्व देता है। यह हमें प्यार, भाईचारे और सहानुभूति के महत्व को सिखाता है।यह उत्सव रमजान की समाप्ति को दर्शाता है। रमजान उपवास का स्वर्गीय महीना है। मुस्लिम रमजान के चंद्रमा को देखने के बाद पूरे महीने पूरे उपवास करते हैं। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ पर अनेक धर्मो के लोग एक साथ निवास करते हैं। जिस प्रकार हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्योहार दीवाली, होली, जन्माष्टमी हैं, उसी प्रकार मुसलमानों के दो प्रसिद्ध त्योहार हैं जिनमें से एक को ईद अथवा ईदुल फितर कहा जाता है तथा दूसरे को ईदुज्जुहा अथवा बकरईद कहा जाता है। ईद का त्योहार प्रेमभाव तथा भाईचारा बढ़ाने वाले हैं । मुसलमान इन त्योहारों को पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। ईद की प्रतीक्षा हर व्यक्ति को रहती है। ईद का चाँद सब के लिए विनम्रता तथा भाईचारे का संदेश लेकर आता है। चाँद रात की खुशी का ठिकाना ही नहीं होता। रात भर लोग बाजारों में कपड़े तथा जूते इत्यादि खरीदते हैं । वैसे तो ईद की तैयारियाँ लगभग एक मास पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती है। लोग नये-नये कपड़े सिलवाते हैं, मकानों को सजाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे ईद का चाँद देखने के दिन निकट आते हैं, मुसलमान अत्यन्त उत्साहित होकर रोजे रखते हैं तथा पाँच समय की नमाज के साथ ही ‘तरावीह’ भी पढ़ा करते हैं, यह सारी इबादतें सामूहिक रूप से की जाती हैं। रमजान की समाप्ति ईद के त्यौहार की खुशी लेकर आती है। इस दिन लोग सुबह को फजिर की सामूहिक नमाज अदा करके नये कपड़े पहनते हैं। नये कपडों पर ‘इतर’ भी लगाया जाता है तथा सिर पर टोपी ओढ़ी जाती है, तत्पश्चात लोग अपने-अपने घरों से ‘नमाजे दोगाना’ पढ़ने ईदगाह अथवा जामा मस्जिद जाते हैं।नमाज पढ़ने के पश्चात् सब एक दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाइयाँ देते हैं। इस दिन दुकानों तथा बाजार दुल्हन की तरह सजे होते हैं। प्रत्येक मुसलमान अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार मिठाइयाँ बच्चों के लिए खिलौने खरीदता है। लोग मित्र और सम्बधियों में मिठाइयाँ बटवाते हैं।ईद के दिन की सबसे खास चीजें सिवय्या और शीर होती हैं। लोग जब ईद की शुभकामनाएँ देने एक दूसरे के घर जाते हैं तो ‘शीर’ अथवा ‘सिवय्या’ खिलाकर अपनी खुशी का इजहार किया जाता है। ईद का त्योहार हमें यही शिक्षा देता है कि हमें मुहम्मद साहब के दिखाए गए रास्ते पर ही चलना चाहिए और उन्घ्की शिक्षाओं का पालन करते हुए किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।इस बार अल्लाह ने अपने बंदों की कड़ी परीक्षा ली है। दुनिया भर में कोरोन की महामारी ने तबाही मचा रखी है और इसके संक्रमण से बचने का एकमात्र तरीका सोशल डिस्टेंसिंग था। इसके लिए लाकडाउन किया गया। पूरे रमजान माह में सोशल डिस्टेंसिंग था। इसके लिए लाकडाउन किया गया। पूरे रजमान माह में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखकर रोजा रखा गया और अब ईद भी इसी भावना से मनायी जा रही है। हम एक दूसरे से गले भले ही नहीं मिल पा रहे हैं लेकिन दिल से दिल तो सभी का मिल ही रहा है।
(हिफी)