ऑनलाइन संस्कृत कॉन्क्लेव में संस्कृत को बढ़ावा देने पर हुई चर्चा

-यह कॉन्क्लेव ‘समर्पणम’ की एक पहल थी जिसमें आईआईटी रुड़की सहित राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के छात्र और संकाय सदस्य शामिल थे।

रुड़की। ‘संस्कृत अध्ययन और संबद्ध क्षेत्रों का महत्व और भविष्य’ शीर्षक पर आधारित एक ऑनलाइन संस्कृत कॉन्क्लेव में शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भाग लिया और अपने विचार प्रस्तुत किए। यह आईआईटी रुड़की सहित राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के छात्रों और संकाय सदस्यों के एक विर्चुअल ग्रुप, ‘समर्पणम’ (संस्कृतया अर्पणम का संक्षिप्त रूप) की संयुक्त पहल थी। आयोजन का उद्देश्य संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा को लेकर भारतीय युवाओं को जागरूक करना और संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहित करना था।इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे थे। इस दौरान प्रो. सुभाष काक (ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए), प्रो. एम. डी. श्रीनिवास (सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज), श्री चामु कृष्ण शास्त्री (संस्कृत प्रमोशन फाउंडेशन), प्रो. के. रामासुब्रमण्यन (आईआईटी मुंबई), प्रो. श्रीनिवास वाराखेड़ी (कुलपति, कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय), प्रो. माइकल डैनिनो (आईआईटी गांधीनगर), प्रो. के. एस. कन्नन (आईआईटी मद्रास), प्रो. अमिताभ घोष, (पूर्व निदेशक, आईआईटी खड़गपुर) और डॉ. अनिल कुमार गौरीशेट्टी, आईआईटी रुड़की (आयोजन सचिव) जैसे गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति देखी गई।”यह गर्व की बात है कि आईआईटी रुड़की जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थान ने संस्कृत को बढ़ावा देने के प्रयास में संबंधित साझेदारों को रचनात्मक विचार साझा करने का एक मंच प्रदान किया। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो तकनीक आधारित नवाचार के माध्यम से भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को संरेखित करता है। भारत प्राचीन समय से ही नालंदा और तक्षशिला जैसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के साथ शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र रहा है। इस तरह की पहलें भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत और न्यू इंडिया के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी,” डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार, ने कहा।“संस्कृत भारतीय संस्कृति और विरासत का एक अभिन्न अंग है। यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में शामिल है। संस्कृत में कम्युनिकेशन और इसके अध्ययन को प्रोत्साहन, भारत को वैश्विक मंच पर एक साहित्यिक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा। विभिन्न विषयों के ज्ञान से एक क्रॉस-डिसिप्लिनरी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना, भाषा की अप्रयुक्त क्षमता के उपयोग में काफी सहायक होगा,” प्रो. अनिल सहस्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई, ने कहा।“हमें संस्कृत साहित्य में ज्ञान के मोती खोजने की जरूरत है जो आज की दुनिया में प्रासंगिक हैं। इसके लिए कई अलग-अलग विषयों के शिक्षाविदों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह कॉन्क्लेव कई अलग-अलग संस्थानों के शोधकर्ताओं को एक मंच पर लाने का एक प्रयास है और उम्मीद है कि यह भविष्य में और अधिक सकारात्मक पहल को सामने लाएगा,” प्रो. अजीत के. चतुर्वेदी, निदेशक- आईआईटी रुड़की, ने कहा। पाँच-सदस्यों के एक पैनल ने ‘प्रमुख संस्थानों द्वारा संस्कृत अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए किस प्रकार के शैक्षणिक और अनुसंधान गतिविधियों को प्रयोग में लाया जाय ?’ विषय पर विचार-विमर्श किया। इस दौरान युवाओं के बीच संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए अकादमिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने में प्रमुख संस्थानों की भूमिका और विभिन्न तरीकों पर विचार किया गया।इस सम्मेलन में संस्कृत आधारित ज्ञान प्रणाली में कम्प्यूटेशनल थिंकिंग मेटाफोर, संस्कृत साहित्य में विज्ञान और संस्कृत शिक्षा में क्रॉसरोड्स: एचईआई की भूमिका, विषयों पर भी चर्चा हुई, जिसपर क्रमशः प्रो. सुभाष काक, प्रो. एम डी श्रीनिवास और श्री चामु कृष्णा शास्त्री ने अपने विचार प्रस्तुत किये। कॉन्क्लेव में चर्चा किए गए विषयों में एक महत्वपूर्ण विषय था-‘संस्कृत का विश्व स्तर पर अध्ययन, और कैसे भारत और इसके उच्च शिक्षण संस्थान एनईपी-2020 के अनुमोदन के मद्देनजर इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं’। धन्यवाद ज्ञापन आईआईटी दिल्ली के प्रो. प्रतोष ने प्रस्तुत किया।

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