दहेज उत्पीड़न में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के फैसले पर फिर होगा विचार

 नई दिल्ली। दहेज उत्पीड़न (आइपीसी धारा 498ए) में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने और गाइड लाइन जारी करने के दो न्यायाधीशों के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ फिर विचार करेगी। बुधवार को कोर्ट ने मामले में विचार का संकेत देते हुए कहा कि जब कानून है तो कोर्ट उस बारे में कैसे दिशा निर्देश तय कर सकता है। धारा 498ए आइपीसी का प्रावधान और कानून है अगर कोर्ट उसके बारे में कोई गाइड लाइन तय करता है तो ये कानून में दखल देने के समान होगा।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो न्यायाधीशों के आदेश पर उपरोक्त टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट पुलिस को धारा 498ए में एफआइआर दर्ज करने के बारे में कैसे निर्देश दे सकता है। ये तो आइपीसी और सीआरपीसी के प्रावधानों से तय होगा। कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी। पीठ ने कहा कि उनकी कोई मंशा इस बारे में गाइड लाइन तय करनी की नहीं है। पीठ ने कहा कि वे इस मामले में जनवरी के तीसरे सप्ताह में सुनवाई करेंगे। इससे पहले दो न्यायाधीशों के फैसले को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठनों के वकील और मामले में न्यायमित्रों ने आदेश का विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि जुलाई के आदेश के बाद से दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारियां नहीं हो रही हैं। उस आदेश पर रोक लगाई जानी चाहिए।

मालूम हो कि गत 27 जुलाई को न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने धारा 498ए के तहत दहेज उत्पीड़न की शिकायतों के दुरुपयोग पर सुनवाई करते हुए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये थे। कोर्ट ने ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और कहा था कि हर जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन किया जाये। समिति दहेज उत्पीड़न से संबंधी शिकायत की जांच करेगी और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि हर जिले की लीगल सर्विस अथारिटी यह समिति बनाएगी और समिति में तीन सदस्य होने चाहिए। समिति में कानूनी, स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि सदस्य हो सकते हैं। लेकिन समिति के सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जाएगा।

हालांकि उस फैसले में कोर्ट ने साफ किया था कि यदि महिला घायल होती है या फिर उसकी मौत हो जाती है तो यह नियम लागू नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को गैर सरकारी संगठन एक्शन फोरम और न्यायधर ने चुनौती देते हुए कहा है कि कोर्ट की गाइड लाइन दहेज उत्पीड़न के मामलो में एफआईआर दर्ज करने में बाधा बन रही हैं। याचिका में दहेज उत्पीड़न के कानूनी प्रावधान लागू करने की मांग की गई है।

इससे पहले 13 अक्टूबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा था कि वे कोर्ट के जुलाई के आदेश से सहमत नहीं हैं क्योंकि कोर्ट कानून नहीं बनाता बल्कि उसकी व्याख्या करता है। कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी में पति को संरक्षण देने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं। उनका मानना है कि ऐसे आदेश महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *