उत्तराखंड से निकली है जन-गण-मन की धुन, इन्होंने की मौलिक धुन तैयार
हल्द्वानी : कम ही लोगों को पता होगा कि राष्ट्रगान जन-गण-मन के तार उत्तराखंड ने झंकृत किए थे। सिर्फ इसलिए नहीं कि गीतांजलि (इसी काव्य संकलन का जन-गण-मन भी एक पाठ है) की रचना गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने कुमाऊं के रमणीक स्थल रामगढ़ में की थी। बल्कि इसलिए क्योंकि राष्ट्रगान को जिस कर्णप्रिय व ओजस्वी धुन में गाया जाता है, उसे कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने कंपोज किया था। कैप्टन राम सिंह कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के मूनाकोट क्षेत्र के मूल निवासी थे।
कैप्टन राम सिंह का निधन 15 अप्रैल, 2002 को हो गया था। लेकिन, दुनिया से रुखसती से पहले अपने जीवनकाल में उन्होंने बताया था कि स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कैप्टन आबिद हसन के साथ मिलकर जर्मनी में 1941 में गीत जन-गण-मन अधिनायक जय है..का रूपांतरण किया था। इस रूपांतरित गीत ‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा’ में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला के स्थान पर सरल हिंदुस्तानी शब्दों का प्रयोग किया गया था और अधिनायक व भारत भाग्य विधाता जैसे शब्दों से परहेज। कुछ अशुद्धियां रह जाने की वजह से 1943 में सिंगापुर में मुमताज हुसैन ने इसे शुद्ध कर गीत का रूप दिया था।
इसकी धुन संबंधी इतिहास को लेकर उनका कहना था कि नेताजी ने सिंगापुर में आह्वान किया था कि राष्ट्रगीत (कौमी तराना) की धुन ऐसी बने कि आजाद हिंद फौज की स्थापना के अवसर पर गायन के दौरान कैथे हाउस (जहां आइएनए स्थापित हुआ) की छत भी दो फाड़ हो जाए और आसमान से देवगण पुष्प वर्षा करने लगें। इसके बाद ही कैप्टन राम सिंह ने इसकी मौलिक धुन तैयार की थी।