संकट में नैनीताल, शून्य के स्तर पर पहुंची झील, बूंद-बूंद को तरस जाएंगे लोग
देहरादून: जिस नैनी झील के कारण देश व दुनिया में नैनीताल को सरोवर नगरी के नाम से जाना जाता है, उसके इस ‘ट्रेड मार्क’ पर समय के साथ संकट गहरा रहा है। पीने के पानी के लिए झील पर बढ़ती निर्भरता व झील के स्रोतों के संरक्षण के अभाव में पिछले 14 वर्षों में झील 10 बार शून्य के स्तर पर जा पहुंची। यह वह स्तर होता है, जब किसी स्रोत का पानी न्यूनतम कमी के स्तर को भी पार कर जाता है।
नैनी झील में 90.99 फीट की सतह से जब पानी का स्तर 12 फीट से नीचे चला जाता है, तब उसे शून्य स्तर माना जाता है। नैनी झील पुनर्जीवीकरण पर आयोजित सेमीनार में सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सीईडीएआर) उत्तराखंड ने इस हकीकत को साझा किया। हालात ऐसे ही रहे तो यहां लोग पीने के पानी के लिए भी तरस जाएंगे।
सेमिनार के दौरान सीईडीएआर के उप कार्यकारी निदेशक विशाल सिंह ने बताया कि इससे पहले झील शून्य के स्तर पर सिर्फ वर्ष 1923 व 1980 में ही पहुंची थी। दूसरी हकीकत यह है कि वर्ष 2017 के ग्रीष्मकाल में झील का पानी सामान्य से 18 फीट नीचे जा पहुंचा। इसकी वजह यह है कि झील से रोजाना 16 मिलियन लीटर पानी खींचा जाता है, जबकि इसके स्रोत के संरक्षण की दिशा में अपेक्षित प्रयास नहीं हो पाए।
दूसरी तरफ नैनीताल के पेयजल का एकमात्र स्रोत इस झील पर जनसंख्या का दबाव भी बेतहाशा बढ़ा है। नैनीताल नगर की जनसंख्या भले ही 42 हजार के करीब हो, मगर ग्रीष्मकाल में यहां पर्यटकों को मिलाकर जनसंख्या का आंकड़ा सात लाख को पार कर जाता है।