आरुषि हत्याकांडः सीबीआइ जज ने कल्पनालोक में जाकर मनमाफिक कहानी गढ़ी
इलाहाबाद | नोएडा के बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड मामले का फैसला सुनाने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के एक न्यायाधीश ने सीबीआइ कोर्ट न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है। न्यायाधीश ने फैसले में कहा है कि सीबीआइ जज ने कल्पना लोक में जाकर मनमाफिक स्टोरी गढ़ी है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि विचारण न्यायालय ने फिल्मी डायरेक्टर की तरह काल्पनिक कहानी गढ़कर फैसला सुनाया है। आरोपियों को सजा सुनाने की जिद में वह भूल गए कि उन्होंने क्या आरोप लगाए थे? और उनके सामने कौन सा मुद्दा है। किसी को नहीं मालूम कि वहां क्या हुआ। केवल परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान ही लगाया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि जज ने कानून की बेसिक अवधारणाओं व तथ्यों से अलग कल्पना लोक में विचरण करते हुए अपनी अलग कहानी गढ़ ली। एकांगी सोच के साथ अलग ही मानसिक स्थिति में स्वयं को रखकर जज ने फैसला सुनाया है। खंडपीठ के न्यायमूर्ति एके मिश्र ने फैसले के कुछ पन्नों में अपनी अलग-अलग भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि सीबीआइ जज ने मनमाने ढंग से साक्ष्यों को कल्पना की उड़ान के तरह पिक एंड चूज करते हुए तोड़मरोड़ कर कानूनी अवधारणा के विपरीत सजा सुनाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि संवेदनशील मामलों में जजों का अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, जो भी साक्ष्य या फिर तथ्य है उनका आंकलन करते समय संकीर्ण मानसिकता से अलग हटकर कानूनी दायरे में निष्कर्ष निकालें। कोर्ट ने कहा कि कानून में एक जज का जो कत्र्तव्य तय किया है, उससे परे जाकर कल्पनाशीलता के भावातिरेक में आकर सीबीआइ जज ने महत्वपूर्ण तथ्यों की पूरी तरह से अनदेखी की है। काल्पनिक सीन तैयार करते हुए कानून की बेसिक जरूरतों को भूल वह फैसले पर पहुंचे।
न्यायमूर्ति वीके नारायण तथा न्यायमूर्ति एके मिश्र की खंडपीठ ने सीबीआइ कोर्ट की गलतियों को अपने फैसले में उधेड़ कर रख दिया। कोर्ट ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि जज निष्पक्ष व पारदर्शी ढंग से काम करेगा। कल्पना लोक में जाकर फैसले नहीं लेगा। ऐसा करना कानून का मजाक होगा। ज्ञात हो कि गाजियाबाद सीबीआइ कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश श्यामलाल ने 28 नवंबर 2013 को डा. राजेश तलवार व नूपुर तलवार को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसे रद करते हुए हाईकोर्ट ने डाक्टर दंपती को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सजा सुनाने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त नहीं थे, फिर भी दोषी ठहराया गया, जबकि दंपती को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए था। गुरुवार को हाईकोर्ट से सुनाया गया फैसला शुक्रवार को वेबसाइट पर अपलोड हुआ। 273 पृष्ठ के फैसले में 10 पृष्ठ में न्यायमूर्ति मिश्र ने न्याय देने के ट्रायल कोर्ट के तरीके की बखिया उधेड़कर रख दी।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्य प्रणाली पर तल्ख टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि वह गणित के अध्यापक की तरह काम नहीं कर सकती, जो कल्पना स्वरूप मानकर प्रश्न हल करता है। गेस करके आपराधिक केसों का हल नहीं किया जा सकता है। कानून की कसौटी पर खरे उतरने वाले साक्ष्यों के बल पर ही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि सीबीआइ जज मस्तिष्क शून्य होकर कल्पना लोक में विचरण करते हुए साक्ष्यों के कानूनी असर को समझने में विफल रहे हैं। पूरा फैसला स्वयं द्वारा निर्मित कल्पना पर आधारित है, जिसे साक्ष्यों का बल नहीं प्राप्त है। सबसे पहला संदिग्ध घरेलू नौकर हेमराज था, जो लापता था, लेकिन उसकी लाश घर के छत पर ही मिली। मई 2008 में 14 वर्षीय व 45 वर्षीय हेमराज की हत्या हो गई थी, हत्या किसने की अभी भी भविष्य के गर्त में है।
News Source: jagran.com