बसपा की निकाय चुनावों के जरिये घावों पर मरहम लगाने की कोशिश
देहरादून : उत्तराखंड प्रदेश में कभी निकाय व पंचायत चुनावों से दूरी रखने वाली बहुजन समाज पार्टी को इसकी महत्ता का अहसास होने लगा है। विधानसभा चुनावों में करारी हार झेलने के बाद अब बसपा अब पूरी शिद्दत के साथ निकाय चुनावों में खम ठोकने की तैयारी कर रही है।
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों की सफलता से उत्साहित बसपा को उत्तराखंड में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। बसपा का मकसद निकाय चुनावों के जरिये 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करना भी है।
राज्य गठन के बाद बसपा ने प्रदेश में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। बसपा प्रदेश में तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरी थी। यह इस बात से समझा जा सकता है कि पहले विधानसभा चुनाव 2002 में बसपा को सात सीटें मिली। इसके बाद वर्ष 2007 में हुए चुनावों में बसपा ने और बेहतर प्रदर्शन करते हुए एक सीट का इजाफा किया।
इस चुनाव में बसपा को आठ सीटें मिलीं। हालांकि, 2012 में बसपा को केवल तीन सीटों पर ही जीत मिल पाई थी, लेकिन सत्ता का गणित ऐसा बना कि वह किंग मेकर के रूप में सामने आई और सत्ता सुख भी हासिल किया।
यह बाद दीगर है कि बाद में तीन में से दो विधायकों ने बसपा का साथ छोड़ दिया। बीते वर्ष यानी 2017 के चुनावों में बसपा के पैर भी मोदी लहर के सामने उखड़ गए। राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब बसपा का विधानसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुल पाया। यहां तक कि पार्टी का मत प्रतिशत 12.19 से घटकर सात प्रतिशत पर पहुंच गया। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं को भी खासा धक्का लगा।
अब प्रदेश में निकाय चुनावों को बसपा एक सुनहरे मौके के रूप में देख रही है। देखा जाए तो बसपा का वोट बैंक पिछड़ी जाति ही रहा है। हालांकि पार्टी ने अब बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया है।
उत्तराखंड में बसपा के प्रमुख गढ़ मैदानी इलाके ही हैं। प्रदेश के निकायों में भी अधिकतर क्षेत्र मैदानी है। यही कारण है कि बसपा अब पूरी ताकत के साथ निकाय चुनाव लडऩा चाहती है। इसके लिए पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी है। बसपा के उत्तराखंड प्रभारी रामअचल राजभर का कहना है कि बसपा पूरी मजबूती के साथ निकाय चुनाव लड़ेगी और प्रदेश में एक बार फिर मजबूत स्थिति में आएगी।