आम जनता की जेबों पर भाजपा सरकार का प्रहार

रुपए में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में तेज उछाल के बीच देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तीन सितम्बर 18 को अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गईं। तेल कंपनियों की जारी अधिसूचना के अनुसार दिल्ली में पेट्रोल का भाव 79.31 रुपये प्रति लीटर और डीजल 71.34 रुपये प्रति लीटर के नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। दिल्ली में पेट्रोल का भाव 16 पैसे और डीजल का भाव 19 पैसे प्रति लीटर की नयी बढ़ोत्तरी की गई है।मुंबई में पेट्रोल 86.72 रुपये प्रति लीटर हो गया। मुंबई में डीजल की कीमत आज 75.74 रुपये प्रति लीटर हो गई। डीजल और प्रेट्रोल माल और सेवाकर(जीएसटी) से बाहर हैं। इस लिए राज्यों में इन पर स्थानीय बिक्री कर की दरें अलग अलग होने से पेट्रोलियम ईंधन के मूल्य भी अलग अलग हो जाते हैं। कर भार कम होने के कारण दिल्ली में ईंधन के दाम अन्य मेट्रो शहरों और राज्यों की राजधानियों की तुलना में सबसे कम है। पिछले साल मध्य जून से कंपनियों को लागत के हिसाब से ईंधन के भाव में दैनिक स्तर पर संशोधन की छूट दी गयी थी। इस व्यवस्था के तहत डीजल के दाम में सोमवार को किसी एक दिन की सबसे बढ़ी वृद्धि है। पेट्रोलिम मूल्य नियंत्रण से सरकार के हाथ खड़े होने का परिणाम है कि हर स्तर पर मंहगाई बढ़ रही है। ऐसे में यह सोचना गलत नही होगा कि किसी भी देश और समाज के लिए इससे ज्यादा दयनीय स्थिति भला और क्या होगी कि पूरा तंत्र ही संदेह के दायरे में आ जाए ? लोग कहां जाएं? किस पर भरोसा … हर तरफ निराशा का आलम है।
पेट्रोल 16 अगस्त के बाद से अब तक दो रुपये 16 पैसे प्रति लीटर और डीजल 2.61 रुपये प्रति लीटर बढ़ गया है। इससे पहले डीजल 28 मई को 69.31 रुपये प्रति लीटर पर था लेकिन 27 अगस्त को यह रिकॉर्ड टूटा और तीन सितंबर को यह एक नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई।अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का सिलसिला जिस तरह थमता नहीं दिख रहा उसके चलते यह भी अंदेशा उभर आया है कि कहीं वह प्रति डॉलर 72-73 तक न पहुंच जाए। इस अंदेशे का आधार यह है कि बीते एक पखवाड़े में रुपये में 85 पैसे की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। हालांकि एक तर्क यह भी है कि रुपये का मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक हो गया था और मौजूदा गिरावट उसे व्यावहारिक स्तर पर ला रही है। इस तर्क को निराधार नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि रुपये के टूटने से पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। एक सीमा के बाद पेट्रोलियम पदार्थो के बढ़े मूल्य महंगाई बढ़ाने वाले साबित होंगे। चूंकि भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है इसलिए उसे उसकी खरीद में कहीं अधिक डॉलर देने पड़ रहे हैं। एक समस्या यह भी है कि कुछ तेल उत्पादक देशों के संकट से दो-चार होने के कारण कच्चे तेल के मूल्य भी बढ़ रहे हैं।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रोज लुढ़क रहे रुपए ने ईंधन के दामों में आग लगा दी है। देश में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान पर पहुंच गए। इसके बाद एक बार फिर इस पर विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल को जल्द से जल्द जीएसटी के दायरे में लेकर आए।चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी अपरिहार्य नहीं है क्योंकि कीमत का आधार पर लगने वाला अत्यधिक कर है। अगर टैक्स कम कर दिया जाए तो दामों में भी कमी आएगी। कहा जा रहा है कि ईरान व वेनेजुएला में संकट के कारण कच्चे तेल का उत्पादन घटने के आसार हैं। इससे आने वाले दिनों में भी दाम कम होने की संभावना नहीं है। रुपया 21 पैसे टूटकर 71.22सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 21 पैसे और गिरकर 71.22 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ। इससे तेल का आयात और महंगा हो गया है।पेट्रोल व डीजल की कीमत देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग हैं। केंद्र ने इन्हें जीएसटी में लाने की बात कही थी, लेकिन कई राज्यों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। इन पर राज्य वैट के रूप में काफी शुल्क वसूलते हैं। केंद्र का भी उत्पाद शुल्क में कोई रियायत देने का संकेत नहीं है।कच्चा तेल महंगा होने का सबसे ज्यादा असर चालू खाते के घाटे पर पड़ने की आशंका है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा क्रूड आयात करता है। इसलिए काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा इस पर खर्च करना पड़ती है। तेल की बढ़ती कीमतों के लिए फिलहाल डॉलर के मुकाबले रुपया एक पखवाड़े में 1.06 रुपए गिरने के साथ 16 अगस्त से तीन सितंबर तक कच्चा तेल 7 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोंतरी को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसके अलावा ईरान के व्यापार पर अमेरिकी पाबंदी व आंतरिक अस्थिरता से वेनेजुएला का तेल उत्पादन घटकर एक तिहाई रहना। अमेरिका-चीन के बीच प्रतिस्पर्धा का विश्व अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका। डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया और कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष एक तरह से दोहरा संकट खड़ा कर रहे हैं। चूंकि कच्चे तेल के साथ अन्य तमाम वस्तुओं का भी आयात होता है इसलिए अधिक डॉलर की निकासी विदेशी मुद्रा के भंडार पर भी असर डाल रही है। निरूसंदेह कमजोर होते रुपये का एक पहलू यह भी है कि निर्यातकों को राहत मिल रही है, लेकिन यह राहत चालू खाते के घाटे को कम करने में मुश्किल से ही सहायक बनती है और तथ्य यह है कि रुपये में गिरावट का एक कारण चालू खाते का घाटा बढ़ना भी है। हालांकि रुपये की कमजोरी के पीछे कुछ अन्य कारण भी हैं, लेकिन वे ऐसे हैं जिन पर भारत का कोई जोर नहीं, जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एवं ईरान को लेकर अमेरिकी रवैये का और सख्त होना।यह कोई शुभ संकेत नहीं कि रुपये में गिरावट का सिलसिला कायम रहने के आसार हैं। यदि यह सिलसिला लंबा खिंचा तो कमजोर रुपया महंगाई को बल प्रदान करने के साथ ही विकास दर पर भी असर डालने वाला साबित हो सकता है। यह सही है कि डॉलर के मुकाबले अन्य देशों की मुद्रा में भी गिरावट आ रही है, लेकिन तेज गिरावट का सिलसिला चिंतित करने वाला है। अब तो ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि भारत की गिनती उन देशों में होने जा रही है जिनकी मुद्रा में कहीं अधिक गिरावट दर्ज हो रही है। यह भी ठीक नहीं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार होने के कारण विदेशी पूंजी तेजी के साथ बाहर जा रही है। रुपया जिन बाहरी कारणों अर्थात अंतरराष्ट्रीय कारणों से कमजोर हो रहा उनके संदर्भ में तो कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन जब भारतीय मुद्रा पूरी तौर पर नियंत्रण मुक्त नहीं है तब फिर रिजर्व बैंक को उसकी सेहत की चिंता करनी ही होगी। रिजर्व बैंक के साथ-साथ सरकार को भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि अगर महंगाई ने सिर उठा लिया तो फिर उस पर आनन-फानन काबू पाना संभव नहीं होगा।

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