वेदांत की समाधान योजना को मंजूरी
राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) के कोलकाता पीठ ने इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स के लिए वेदांत की समाधान योजना को मंजूरी दे दी है। इससे रिजर्व बैंक द्वारा दिवालिया कानून (आईबीसी) के तहत भेजे गए 12 मामलो में से पहले मामले के ऋण समाधान का रास्ता साफ हो गया है। ऋणदाताओं की समिति ने शत प्रतिशत वोटिंग के साथ इस समाधान योजना को मंजूरी दी थी और एनसीएलटी के आदेश के मुताबिक यह तुरंत प्रभाव में आ जाएगी।
इलेक्ट्रोस्टील के ऋण समाधान को मंजूरी देने के लिए 270 दिन का समय दिया गया था जो अवधि आज खत्म हो गई। रेनेसंस स्टील इडिया ने आईबीसी की धारा 29ए के तहत वैधता के आधार पर वेदांत की समाधान योजना को चुनौती दी थी। रेनेशां समूह के अध्यक्ष अभिषेक डालमिया ने कहा कि वह इस मामले को उच्चतम न्यायालय तक ले जाएंगे।
रेनेसंस ने भी इलेक्ट्रोस्टील के लिए बोली लगाई थी और वेदांत तथा दूसरी सबसे बड़ी बोली लगाने वाली टाटा स्टील को आईबीसी की धारा 29ए के तहत चुनौती दी थी। डालमिया ने कहा, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) में टाटा स्टील और वेदांत की बोली लगाने की वैधता पर सुनवाई है।
वेदांत ने इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स को 53.20 अरब रुपये की पेशकश की थी और उसकी बोली सबसे अधिक थी। माना जा रहा है कि टाटा की पेशकश इससे करीब 20 अरब रुपये कम थी। इलेक्ट्रोस्टील की वेबसाइट के मुताबिक 14 मार्च, 2018 तक कंपनी पर कुल 133 अरब रुपये बकाया था। इलेक्ट्रोस्टील के अधिग्रहण से वेदांत इस्पात निर्माण के क्षेत्र में कदम रखेगी।
इलेक्ट्रोस्टील की क्षमता 15 लाख टन है जबकि उसकी योजना इसे बढ़ाकर 25.1 लाख टन करने की है। वेदांत के पास झारखंड में लौह अयस्क की खदान है जबकि इलेक्ट्रोस्टील का संयंत्र भी इसी राज्य में है। वेदांत का लौह अयस्क का कारोबार गोवा और कर्नाटक में फैसला हुआ है और उसने इस्पात कारोबार के लिए कुछ योजनाएं बना रखी हैं। इलेक्ट्रोस्टील उसके इस महत्त्वाकांक्षी योजना का एक छोटा हिस्सा है।
वेदांत ने एस्सार स्टील के लिए भी बोली लगाई है जिसकी क्षमता 97 लाख टन है। आरबीआई ने कर्ज में फंसी जिन 12 कंपनियों को आईबीसी में भेजा है उनमें एस्सार स्टील भी शामिल है। वेदांत ने एस्सार की पहले दौर की बोली में हिस्सा नहीं लिया लेकिन दूसरे दौर में कूदकर सबको चौंका दिया। इसलिए इलेक्ट्रोस्टील के मामले में वेदांत के खिलाफ फैसले से एस्सार के लिए उसकी बोली भी सवालों के घेरे में आ सकती थी।
एनसीएलटी का आदेश आईबीसी की धारा 29ए में संशोधन की मंशा पर आधारित है। पंचाट ने कहा कि संशोधन का मकसद ऐसे लोगों को बोली प्रक्रिया से दूर रखना है जिन्होंने कर्ज चुकाने में जानबूझकर चूक की है या फिर आदतन कानून को नहीं मानने वाले हैं। ऐसे लोग दिवालिया समाधान के लिए जोखिम हो सकते हैं। रेनेसंस ने वेदांत की बोली की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि वेदांत की सहयोगी और वेदांत से जुड़ी कोंकोला कॉपर माइंस को जांबिया में पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण कानून के कई प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया गया है। इसके बाद ही वेदांत की समाधान योजना सामने आयी और एनसीएलटी ने इसे मंजूरी दी है।