अमेरिका का सेजे सटैन रैथल में पढ़ रहा जिंदगी का फलसफा
उत्तरकाशी : उन्मुक्त जीवन शैली और आधुनिकता की चकाचौंध से दूर अमेरिका का एक युवा इन दिनों उत्तरकाशी जिले के रैथल गांव में जिंदगी का फलसफा पढ़ रहा है। वह यहां पारंपरिक चूल्हे पर रोटी बनाने के साथ पारंपरिक स्थानीय उत्पादों के पकवान बनाना सीख रहा है तो शिलबट्टे पर चटनी पीसना भी।
यहां तक कि वो खेतों में निराई-गुड़ाई भी कर रहा है। भारतीय संस्कृति में रिश्तों की अहमियत और गांव के सुकून से अभिभूत 18 वर्षीय सेजे सटैन अमेरिका के कोलोरैडो शहर का रहने वाला है। कहता है, अमेरिका में उसने और उसके परिवार ने कभी खेतीबाड़ी नहीं की। लेकिन, अब यहां से कुछ सीखकर लौटूंगा तो जरूर जैविक खेती करूंगा।
अमेरिकी वकील जॉन का बेटा सेजे सटैन 11 जून को भारत आ गया था। एक माह तक उसने नेताला स्थित शिवानंद आश्रम में योग का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वह निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल की प्रेरणा से बने ग्रीन पीपुल संस्था के संपर्क में आया। भारतीय जीवन शैली से प्रभावित होकर सेजे सटैन ने ग्रीन पीपुल के रैथल स्थित कैंप में खेती-किसानी समेत स्थानीय पकवानों को बनाने का प्रशिक्षण लिया।
इन दिनों वह खेतों में निराई-गुड़ाई, सब्जी की बेलों को बांधना, खेतों के किनारे उगी खास को पशुओं के लिए काटना, जैविक खाद और जैविक उत्पाद तैयार करने के तरीके सीख रहा है। इसके अलावा सेटे सटैन स्थानीय जैविक उत्पादों के पकवान, मसलन लाल भात, गहत (कुलथ) की दाल का फाणू, तोर की दाल का चैंसू, चौलाई और मंडवे की रोटी बनाना भी सीख रहा है।
सेजे सटैन बताता है कि वह एक माह तक जैविक खेती करने और यहां के उत्पादों को तैयार करने का प्रशिक्षण लेगा। अभी उसने 12वीं तक की पढ़ाई की है। आगे की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह जैविक खेती करने वाली विश्व संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूओओएफ (विलिंग वर्कर्स ऑन ऑर्गेनिक फर्म्स) से जुड़कर खेतीबाड़ी करेगा। ग्रीन पीपुल के रूपेश राय ने बताया कि सेजे सटैन ने पारंपरिक खेती, स्थानीय उत्पादों के पकवान और जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग सीखने की बात कही थी। रूपेश भी पिछले दस दिनों से ग्रीन पीपुल के फार्म में काम कर रहा है।