फ्रांस, यूरोप, के बाद उत्तराखण्ड भी भांग की खेती में कर रहा विदेशों की बराबरी
देहरादून । अमेरिका, फ्रांस, यूरोप, चीन, कनाडा के बाद अब उत्तराखंड में भांग की खेती हो रही है। उत्तराखंड सरकार ने भांग की फसल उगाने के लिए इंडियन इंडस्ट्रियल हेंप एसोसिएशन (आइआइएचए) को लाइसेंस जारी किया है। इससे किसानों की आय भी दोगुनी होगी। पौड़ी गढ़वाल के डीएम सुशील कुमार ने बताया कि जिले में एक लाइसेंस जारी किया गया है। इसके लिए सतपुली के समीप बिलखेत में नौ हेक्टेयर भूमि लीज पर दी गई है। बीती 18 जुलाई को यहां पाली हाउस का उद्घाटन किया गया। संभाव्यता उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जहां कानूनी रूप से भांग की खेती की अनुमति दी गई है। भांग का व्यावसायिक कृषिकरण कर किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार ने कानूनी रूप से इसकी खेती की मंजूरी दी है। ट्रायल के रूप में आइआइएचए को पांच साल के लिए आबकारी विभाग के माध्यम से लाइसेंस जारी किया गया है। एसोसिएशन ने पौड़ी जिले के सतपुली के समीप बिलखेत में नौ हेक्टेयर भूमि लीज पर ली है, जहां 500 वर्ग मीटर के लिए तीन पाली हाउस में भांग की इंडस्ट्रियल हैंप प्रजाति का बीज तैयार किया जा रहा है। इसके बाद बीज को किसानों को वितरित कर इसकी व्यावसायिक खेती की जाएगी। आइआइएचए किसानों से ही भांग के रेशा व बीज खरीदेगा। खास बात यह है कि इंडस्ट्रियल हैंप में 0.30 फीसद टीएचसी (नशे की मात्रा) पाई जाती है। भांग एक प्रकार का पौधा है, जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है। भारतवर्ष में भांग के अपने आप पैदा हुए पौधे सभी जगह पाये जाते हैं।
भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। भांग के ऊपर की पत्तियां 1-3 खंडों से युक्त तथा निचली पत्तियां 3-8 खंडों से युक्त होती हैं।एक हेक्टेयर भूमि पर भांग की खेती करने से किसान को तीन महीने के भीतर करीब तीन लाख का मुनाफा हो सकता है। भांग की खेती तीन महीने के भीतर तैयार होती है, जिन स्थानों पर सिंचाई की सुविधा है, वहां दो बार इसकी खेती की जा सकेगी। इंडस्ट्रियल कैंप प्रजाति के भांग के बीच को चटनी व मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके बीज में प्रोटीन की मात्रा सोयाबीन से ज्यादा है। वहीं, रेशे का इस्तेमाल कार की बॉडी, पेपर, टैक्सटाइल, तने से बायोफ्यूल, पेंट, वारनिश, ल्यूब्रिकेंट आयल आदि तमाम तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। फूल व पत्तियों का आयुर्वेदिक दवाओं व सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों में किया जाता है।
आईआईएचए संस्था के डॉयरेक्टर चंद्रप्रकाश सहाय ने बताया कि इस फसल को जंगली जानवरों नुकसान नहीं पहुंचाते। इस भांग की फसल में 0.3 प्रतिशत से कम का नशा होगा, जिसे आबकारी टीम के साथ परीक्षण किया जायेगा। नशे की अधिक मात्रा होने पर फसल को नष्ट कर दिया जायेगा। इस फसल को उगाने वाले किसानों से स्वयं संस्था फसल खरीदेगी व इस फसल का उत्पादन अमेरिका, चायना, कनाडा आदि देशों में हो रहा है व इससे विभिन्न उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इस योजना में 165 लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा जायेगा। बीते 18 जुलाई को ग्राम बिलखेत में आईआईएचए संस्था की ओर से भांग की खेती के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि पर बनाए गए तीन पॉली हाउस का विधिवत पूजा-अर्चना के बाद उद्घाटन किया गया था। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि यह ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसके लगने से किसानों को रोजगार, कृषि व आय की बढ़ोत्तरी व पलायन पर रोक लगेगी।