संदीप शर्मा ब्यूरों चीफ
सड़कों का रखरखाव करने वाले महकमों के वेतन व सुविधाओं पर हर रोज लगभग दो करोड़ खर्च हो रहे हैं इसके बावजूद सड़कों पर कहीं कोई अनुशासन नहीं दिखता. नौसिखियों व ताकतवर नेताओं की मौजूदगी कमजोर सड़क की नींव खोद देती है. यह विडंबना है कि सड़क ढालने की मशीन का चालक और एक मुंशी, सड़क बना डालता है. कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो सड़क बनाते समय उसमें बोल्डर, रोड़ी, मुरम की सही मात्रा कभी नहीं डाली जाती है. शहरों में तो सड़क किनारे वाली मिट्टी उठा कर ही पत्थरों को दबा दिया जाता है. कायदे से कच्ची सड़क पर वेक्यूम सकर से पूरी मिट्टी साफ कर तारकोल डाला जाना चाहिए, क्योंकि मिट्टी पर गरम तारकोल वैसे तो चिपक जाता है, लेकिन वजनी वाहन चलने पर वह उधड़ जाता है.!इस तरह के वेक्यूम-सकर से कच्ची सड़क की सफाई कहीं भी नहीं होती है. हालांकि इसके बिल फाईलों में जरूर होते हैं. इसी तरह सड़क बनाने से पहले पक्की सड़क के दोनों ओर कच्चे में खडंजा लगाना जरूरी होता है. यह तारकोल को फैलने से रोकता है. इसमें रोड़ी मिल कर खडंजे के दवाब में यह सांचे सी ढल जाती है. आमतौर पर ऐसे खडंजे भी कागजों में ही सिमटे होते हैं. कहीं ईंटें बिछाई भी जाती हैं तो उन्हें मुरम या सीमेंट से जोडऩे की जगह महज वहां खुदी मिट्टी पर टिका दिया जाता है. परिणाम-थोड़ा सा पानी पडऩे पर ईंटें उखड़ जाती हैं. यहां से तारकोल व रोड़ी के फैलाव व फटाव की शुरुआत होती है.! सड़क का ढलाव ठीक न होना भी सड़क कटने का बड़ा कारण है. सड़क बीच से उठी हुई व सिरों पर दबी होना चाहिए, ताकि उस पर पानी पड़ते ही किनारों की ओर बह जाए लेकिन शहरी सड़कों का कोई लेबल ही नहीं होता है. बारिश का पानी यहां-वहां बेतरतीब जमा होता है और यह जान लेना जरूरी है कि पानी सड़क का सबसे बड़ा दुश्मन है. सड़क किनारे नालियों की ठीक व्यवस्था न होना भी सड़क के लिए आफत है. नालियों का पानी सड़क के किनारों को काटता रहता है. और एक बार तारकोल कटा नहीं कि गिट्टी, बोल्डर निकलते ही चले जाते हैं.! सड़कों की दुर्गति में देश का उत्सवधर्मी चरित्र भी कम दोषी नहीं है. महानगरों से लेकर सुदूर गांवों तक शादी हो या भगवान की पूजा, किसी राजनीतिक दल का जलसा हो या लंगर, सड़क के बीचों-बीच टैंट लगाने में कोई संकोच नहीं होता है. टैंट के लिए सड़कों पर चार-छह इंच गोलाई व एक फीट गहराई के कई छेद किए जाते हैं जिन्हें टैंट हटाने के बाद बंद करने की जहमत नहीं उठायी जाती. इन छेदों में पानी भरने से सड़क कटती चली जाती है. मजे की बात है कि कुछ दिनों बाद कटी-फटी सड़क के लिए सरकार को कोसने वालों में वे भी शामिल होते हैं, जिनकी करतूत से सड़क इस गति को पहुंचती है.