नेक काम तो खामोश होकर भी होता है : बापू


हरिद्वार,। 
पतित पावनी भगवती गंगा के तट पर पूर्ण कुंभ के अवसर पर चौथे दिन की कथा में बापू ने हरि शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि केवल विष्णु ही अर्थ नहीं है।शब्दकोश में और भी कईं अर्थ है। हरि के अनंत अर्थ है,हरि कथा भी अनंत है,विष्णु अनंत है,वैष्णव भी अनंत है।नारायण अनंत है और नारायण की सेना भी अनंत है। विष्णु से जुड़े वैष्णवों की कथा भी अनंत है,जुड़े हुए सूत्रों की कथा भी अनंत है।लौकिक लीलाओं की कथा अनंत है।आह्लादिनी नी शक्ति राधा,जानकी और शिव से जुड़ी पराम्बा की कथा भी अनंत है। भगवान के जो भी वाहन है वाहन की कथा अनंत है,भगवान के हाथों में धारण किए हुए शंख,चक्र,गदा,पद्म,बांसुरी सब की कथा अनंत है।। भगवत चरित्र की कथा भी अनंत है क्योंकि उनसे जुड़ा अस्तित्व भी अनंत है।।भगवान का नाम,रूप,लीला,धाम अनंत है। भगवान की कथा के गायक भी अनंत है।।काग भुसुंडि लोमस ऋषि के आश्रम में श्राप से कौवा बन गये, फिर लोमस को ग्लानि हुई और फिर वापस बुलाकर रामकथा दी।।एक पूरा ग्रंथ है जिनके ३ नाम है आदि रामायण,ब्रह्म रामायण,भुशुंडि रामायण।।ब्रह्मा जी ने रचना की तो आदि रामायण,कथन भी ब्रह्मा ने किया तो ब्रह्म रामायण है और केंद्र में पूरा काग भुसुंडि का चरित्र है तो भुशुंडिरामायण नाम पड़ा।। तुलसी जी ने उत्तर कांड का बहुत बड़ा हिस्सा भुशुंडि जी के नाम कर दिया है।।भुशुंडि रामायण में चित्र-विचित्र कथाएं मिलेंगे यदि बुद्धि विवेक युक्त ना हो तो मत पडढना।या किसी बुद्ध पुरुष के पास से सुन लेना।। हरि से जुड़ी सब घटनाएं अनंत है, प्रभाव में पावर होता है और स्वभाव में आदमी पूअर होता है! पादुका सब कुछ कर सकती है लेकिन एक की ही होनी चाहिए और थोड़ा धीरज रखना चाहिए।। राम वनवास के १४ साल में अतिवृष्टि और अनावृष्टियां हुई तो सब भरत जी के पास गए।भरत ने कहा राज्य में नहीं चलाता पादुका राजा है।सब पादुका के पास गए और अतिवृष्टि खत्म हो गई।।फिर अनावृष्टि में भी सब पादुका के पास गये।। बापु ने विप्रों की १० प्रकार की सृष्टि बताई।।१- देव ब्राह्मण है जो त्रिकाल संध्या,गायत्री करता है, जीवन ही अनुष्ठान बना कर बैठा है।२-मुनि ब्राह्मण:अन्न नहीं खाता,कंद मूल फल दुग्ध ही लेता है।जहां रहता है उद्वेग नहीं देता मौन रहता है।।३- द्वीज ब्राह्मण:यज्ञोपवीत,शिखा,स्वाध्याय प्रवचन करता है।४-क्षत्रिय ब्राह्मण:राष्ट्र में संकट आए तो शास्त्र को एक और रखकर शस्त्र भी उठा सकता है।।४-वैश्य ब्राह्मण:गायों का पालन करता है और अपने को मिली जमीन पर श्रम कर के अन्न उगाता है।५-शुद्र ब्राहमण:सामने से कहता है मुझे छूना मत,वो खुद शुद्र।।बापू ने कहा नेक काम तो खामोश होते भी होता है।।५-पूजा कुबूल करें और पुकार ना सुने,प्रलोभन दें और पुकार ना सुने वो निषाद ब्राह्मण है।। जैसे गल में कांटा लगा कर मछली को फसाए और मछली पुकारे तो ना सुने।७-चांडाल ब्राह्मण निरंतर क्रोध करता है और क्रोध को अपना अधिकार मानता है।८-पशु ब्राह्मण बिल्कुल विपरीत चलता है।संसार से जुदा चलता है पाशवी वृत्ति का ब्राह्मण।। बापू ने कहा कि क्रोध रूपी नरक के दो द्वारपाल है:द्वैत और द्वैश।।पूजा स्वीकार करें तो पुकार सुनना भी ब्राह्मण का दायित्व है।।केवल राम नाम-हरि नाम का प्रताप कहां पहुंचा देता है।।यदि नाम प्रभाव जानना है और भजन करना है तो ५ वस्तुओं का ध्यान रखना।।रावण ने भजन नहीं किया क्योंकि यह पांच वस्तु रावण के पास नहीं थी।। केवल हरि नाम से भजन को साधन मिटाकर साध्य बनाता है।।साधु के जीवन में भजन साधन नहीं साध्य बन जाता है।।विवेक युक्त,विश्वास युक्त, संयम युक्त,सद्भाव युक्त और पवित्रता युक्त भजन होना चाहिए।।कामरूपी द्वार के दो द्वारपाल है: स्पर्श और रूप।।यह दोनों को महत्व मिले लेकिन ममत्व नहीं मिलना चाहिए।।और लोभ रूपी द्वार के दो द्वारपाल है संग्रह और गिनती।। रामचरितमानस में पांच गंगा की बात हुई है एक स्थूल भागीरथी गंगा,दूसरी राम भक्ति रूपी गंगा, तीसरी कथा गंगा,चौथी गुरुमुखी गंगा और पांचवी गत गंगा यानी कि दशरथ की मृत्यु के बाद रानियां गंगा स्वरूप हुई यह पांच गंगा की बात की गई है।

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