2जी मामले में राजा, कनीमोझी समेत सभी बरी, फैसले के खिलाफ सीबीआइ हाई कोर्ट जाएगी

नई दिल्ली। नौ साल पहले कथित 2जी मामला देश के सबसे बड़े घोटाले के रूप में सामने आया था। गुरुवार को सीबीआइ की विशेष अदालत ने उसे एक झटके में आरोपियों को बरी कर खारिज कर दिया। जांच एजेंसियों की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए न्यायमूर्ति ओपी सैनी ने पूर्व संचार मंत्री ए राजा और द्रमुक नेता कनीमोरी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया। यह फैसला तब आया है जबकि चार्जशीट दाखिल होने तक जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट भी कर रहा था। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए टेलीकॉम कंपनियों के 122 लाइसेंस भी रद कर दिए थे। इसलिए सीबीआइ और ईडी अब इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने की बात कर रहा है। जांच एजेंसियों के मुताबिक, अदालत को साक्ष्य पूरे दिए गए थे लेकिन उन पर गौर ही नहीं किया गया।

इन बिंदुओं पर फैसले को दी जा सकती है चुनौती
सीबीआई 60 दिन की समय-सीमा में अपील कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, इन बिंदुओं पर फैसले को चुनौती दी जा सकती है–
कोर्ट ने अभियोजन के दस्तावेजी सबूतों के बजाय बचाव पक्ष के मौखिक सबूतों को तरजीह दी।
कानून के मुताबिक, यदि मौखिक और दस्तावेजी सबूतों में विरोधाभास हो तो दस्तावेजी सबूतों को माना जाना चाहिए, जो फैसले में नहीं दिखता है।
कथित रिश्वत देने के लिए बाजार से 14 फीसदी ब्याज दर पर पैसे लिए गए, जबकि कलईग्नार टीवी को 5 फीसदी ब्याज पर दिए गए। इसका कोई व्यावसायिक तुक नहीं है। लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज किया गया।
जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई और उसे नियमित तौर पर रिपोर्ट सौंपी जाती रही।
न्यायाधीश ओपी सैनी ने कहा, ‘मैं सुबूतों के लिए सात वर्षों तक इंतजार करता रहा, लेकिन एक भी नहीं मिला। इसलिए मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों पर लगाए गए सभी आरोपों को साबित करने में बुरी तरह से विफल रहा है। लिहाजा सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।’ न्यायाधीश सैनी 14 मार्च, 2011 से इस मामले की सुनवाई कर रहे थे। इस तरह भ्रष्टाचार के सीबीआइ के दो और मनी लांड्रिंग के ईडी के एक मामले से सभी आरोपी मुक्त हो गए।

न्यायाधीश ने कहा- सुबूतों के लिए सात वर्षों तक किया इंतजार, नहीं मिला

-सीएजी ने लगाया था एक लाख 76 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान
-जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट ने की थी, 122 लाइसेंस किए थे रद

जांच एजेंसियां बोलीं-सुबूत दिए पर गौर नहीं किया गया, हाई कोर्ट जाएंगे
मैं हर दिन, गर्मी की छुट्टियों में भी सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतजार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सुबूत लेकर आए। लेकिन, कोई नहीं आया। हालांकि, शुरुआत में अभियोजन ने बहुत उत्साह दिखाया। लेकिन, आखिर में उसका स्तर इस हद तक गिर गया कि वह दिशाहीन और शक्की बन गया –ओपी सैनी, न्यायाधीश। 

हाल के वर्षों का यह सबसे बड़ा फैसला इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के जाने में एक बड़ा कारण इस घोटाले को भी माना जाता रहा है। तत्कालीन कैग विनोद राय ने सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था।
35 लोग थे आरोपी
पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, द्रमुक नेता करुणानिधि की पुत्री और सांसद कनीमोरी के अलावा तत्कालीन सूचना सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, राजा के पूर्व निजी सचिव आरके चंदौलिया, स्वैन टेलीकॉम के प्रमोटर शाहिद उस्मान बलवा, विनोद गोयनका, यूनिटेक लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजय चंद्रा, रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप के शीर्ष कार्यकारी गौतम दोशी, सुरेंद्र पिपारा और हरि नायर समेत इस मामले में 35 आरोपी थे। एस्सार समूह के प्रमोटर रविकांत रुइया व अंशुमान रुइया, लूप टेलीकॉम के प्रोमोटर आइपी खेतान व किरण खेतान, एस्सार समूह के निदेशक विकास सर्राफ के अलावा लूप टेलीकॉम, लूप मोबाइल (इंडिया) लिमिटेड और एस्सार टेलीहोल्डिंग लिमिटेड भी इस मामले में आरोपी बनाए गए थे।


फैसला सुन रो पड़ीं कनीमोरी
सुबह आठ बजे से ही पटियाला हाउस स्थित सीबीआइ कोर्ट के बाहर ए राजा और कनीमोरी के समर्थकों के साथ ही वकीलों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया था। भीड़ को देखते हुए करीब साढ़े नौ बजे कोर्ट रूम में लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। 10.03 बजे कोर्ट पहुंचे सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश ओपी सैनी ने आरोपियों को लाने के आदेश दिए। आरोपियों के अलावा कोर्ट में सीबीआइ व ईडी के वकील भी मौजूद थे। जस्टिस सैनी के फैसले के बाद अदालत कक्ष नारों से गूंज उठा। कनीमोरी ने हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर न्यायाधीश को धन्यवाद दिया और रो पड़ीं।
तीन मामलों में 2183 पेज का फैसला

तीन अलग-अलग मामलों में 2,183 पेज की ऑर्डर कॉपी के साथ पहुंचे जस्टिस सैनी ने कहा कि जितने भी दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश किए गए, उस हिसाब से यह उनका अब तक का सबसे संक्षिप्त फैसला है। इन लोगों के खिलाफ धारा 409 के तहत आपराधिक विश्वासघात और धारा 120बी के तहत आपराधिक षड्यंत्र के आरोप लगाए गए थे।
क्या है मामला

-2जी स्पेक्ट्रम के इस मामले में आरोप है कि सरकार ने पहले आओ पहले पाओ नीति के आधार पर साल 2007 में स्पेक्ट्रम आवंटित किया।
-कैग ने अपनी जांच में पाया कि कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवेदन की इस प्रक्रिया में सरकारी खजाने को राजस्व का भारी नुकसान उठाना पड़ा।
-2009 में सीबीआइ ने इस मामले की जांच शुरू कर दी थी। लेकिन, उसके ढीले रवैये के चलते सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हुई।
-सीबीआइ ने 2011 में सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र और विश्वासघात के आरोपों के साथ चार्जशीट दायर की।
-बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए कई टेलीकॉम कंपनियों के 122 लाइसेंस भी रद कर दिए।

—बयान— 

खराब नीयत से आरोप लगाए गए थे। यह राजनीतिक प्रोपेगैंडा था। यूपीए-एक के खिलाफ साजिश थी यह।
डॉ. मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री

सात वर्षों से मैं आरोपों का सामना कर रही थी। लेकिन, मेरे खिलाफ कोई सुबूत नहीं है। मुझे न्याय मिल गया है।
-कनीमोरी, द्रमुक सांसद


मेरे ही कार्यकाल में संचार क्रांति आई, उसे भुला दिया गया। उसका श्रेय देने के बजाय अपराधी बना दिया गया। कोर्ट द्वारा बरी किया जाने से इसकी पुष्टि हुई है कि मेरा काम जनहित में था।
-ए.राजा, पूर्व दूरसंचार मंत्री

कोर्ट ने मेरी जीरो-लॉस थ्योरी पर मुहर लगाई है। राजग ने भी जीरो-लॉस थ्योरी अपनाई थी। पूर्व कैग विनोद राय को देश से माफी मांगनी चाहिए।
-कपिल सिब्बल, कांग्रेस नेता

सरकार को तुरंत हाई कोर्ट में अपील करनी चाहिए। ऐसे ही मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और शशिकला को बरी कर दिया था। लेकिन, इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुनाई थी।
-सुब्रह्मण्यम स्वामी, भाजपा सांसद

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