सियासत की रेस में चर्च

आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अभी काफी समय है लेकिन देश के सभी राजनैतिक दलों ने अपने सभी तरकश के तीरों को ठीक करना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिये मोदी विरोधी सभी दलों ने महागठबंधन बनाने से लेकर अपने सभी मुद्दों को नये सिरे से पैना करना शुरू कर दिया है। लेकिन सबसे खतरनाक और बेहद भयावह बात यह हो रही है कि देश में अब चर्च व इस्लामिक धर्मगुरु खुलकर राजनीति में उतर आये हैं और राष्ट्रवादी हिंदुओं को सीधे हरा देने के लिये फतवे जारी कर रहे हैं।
गोवा के आर्क बिशप फिलिप नेरी फेराओ ने अपना वार्षिक संदेश जारी करते हुए कहा है कि देश का संविधान व लोकतंत्र बेहद खतरे में आ गया है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता अभिव्यक्ति की आजादी और धर्म की आजादी को बचाने की अपील की हे। उन्होंने लिखा है कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में हमें संविधान को समझने का प्रयास करना होगा। पिछले कुछ समय से देश में एक नया दौर शुरू हुआ है जिसमें हम क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं कैसे रहते हैं या कैसे पूजा करते हैं, ये सब तय किया जा रहा है। इससे मानवाधिकार खतरे में है। लोकतंत्र पर भी संकट पैदा हो गया है। अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा को लेकर डरे हैं। इसलिये सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मिलकर राष्ट्रवादियों को हरा देना चाहिये। गोवा के आर्कबिशप का यह संदेश मीडिया में आते ही बवाल होना तो तय था ही, वह हुआ भी और हो भी रहा है। गोवा के आर्कबिशप का संदेश पूरी तरह से भारत विरोधी और हिंदू विरोधी है।
आखिर लोकसभा चुनावों की तैयारियों के प्रारम्भिक चरण में ही पादरियों और मौलवियों के इस प्रकार के बेहद नफरत भरे फतवे क्यों आने लग गये हैं? पादरी ने पहली बार चर्च के लोगों से देश की राजनीति में बेहद सक्रिय होने की बात कही है जिसके बाद सभी देशभक्त संगठनों व लोगों के दिमाग की बत्ती का जलना स्वाभाविक ही है।
भारत की राजनीति में चर्च की दिलचस्पी इस प्रकार से जाग्रत होना कोई साधारण बात नहीं है। यहां पर इस बात पर ध्यान देना अति आवश्यक है क्योंकि जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार शासन कर रही थी और देश में घोटाले दर घोटाले हो रहे थे तब किसी भी पादरी और मौलवी का लोकतंत्र खतरे में नहीं आ रहा था। लेकिन जब से तन और मन से पूरी तरह से हिंदुत्व निष्ठ प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी सत्तासीन हुए और उप्र में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कमल खिला और त्रिपुरा सहित लगभग सभी पूर्वात्तर राज्यों में बीजेपी और एनडीए की सरकारें बन गयीं तब से चर्च को लोकतंत्र खतरे में नजर आने लग गया है। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था और उनकी हत्या के बाद सैकड़ों निर्दाष सिख समाज के लोगों का नरसंहार किया गया था तब पादरियों और मौलवियों को लोकतंत्र पर खतरा नजर नहीं आया था।
असली कारण यह है कि आज पूरे देश में चर्च की गतिविधियों पर पूरी तरह से लगाम लगा दी गयी है। देशभर में चर्च का झूठ के सहारे किया जाने वाला धर्मांतरण का खेल पूरी तरह से नियंत्रित किया जा चुका है। आज देश का युवा चर्च की ओर प्रेरित नहीं हो रहा अपितु संघ की शाखा से जुडऩा चाह रहा है। आज चर्च राजनीति में इसलिये प्रवेश कर रहा है क्योंकि उसके सबसे बड़े समर्थक गांधी परिवार के राजनीतिक अस्तित्व पर अब तक का सबसे बड़ा संकट पैदा हो गया है। आज चर्च राजनीति में इसलिये आना चाह रहा है क्योंकि दलितों ने ईसाई बनना बंद कर दिया है अपितु अब वह बौद्ध धर्म अधिक स्वीकार कर रहे हैं। सरकार ने विदेशी धन के बल पर चलने वाले सभी एनजीओ को बंद करके चर्च की गतिविधियों पर पूरी तरह से लगाम लगा दी हैं। चर्च के लिये यह संकट उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक फैल रहा है। आज चर्च की राजनीति से प्रेरित अधिकांश नेता, जिनमें शशि थरूर से लेकर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम का परिवार सहित तमाम हस्तियों पर जेल जाने का खतरा लगातार मंडरा रहा है। पूर्वात्तर राज्यों में अभी तक चर्च बड़े आराम से धर्मांतरण का खेल खेलता आ रहा था लेकिन अब उसमें लगाम लगी है। अब केवल केरल, बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु आंध्र प्रदेश और ओडिशा सहित कुछ और राज्यों के कुछ हिस्सों में ही चर्च की गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं। बंगाल आदि में लोकतंत्र इसलिये खतरे में नहीं है क्योंकि वहां पर मौलवियों व पादरियों को अपना खेल खेलने की पूरी आजादी मिली हुई है। बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण का खुला खेल खेल रही है और वहां पर मौलवियों को सैलरी तक दी जा रही है।
वहीं, दूसरी ओर अधिकांश भाजपा शासित राज्य सरकारों ने धर्मांतरण रोकने के लिये कड़े कानून बना दिये हैं तथा कुछ राज्य सरकारें इस विषय पर विचार कर रही हैं।
इन सभी ताकतों को लग रहा है कि यदि २०१९ में एक बार फिर मोदी सरकार पूरी ताकत के साथ वापस आ जाती है तब तो उनका भारत में अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। यही कारण है कि अब चर्च ने बयानबाजियों के माध्यम से अल्पसंख्सक समुदायों को भड़काने का खेल फिर से शुरू कर दिया है। अभी हाल ही में तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाईट प्लांट के विरोध में जिस प्रकार से हिंसा फैलाई गयी और उसमें बिना सोचे समझे कांग्रेसी नेताओं ने संघ को आरोपी बना दिया, एक घृणित साजिश थी।
हिंदू समाज के सभी साधु-संतों को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि इस समय हिंदू समाज पर चौतरफा हमला शुरू हो चुका हैं। हिंदू विरोधी सभी संगठन लामबंद हो चुके है। फतवे निकलने लग गये हैं। कैराना और नूरपुर में इन फतवों का साफ असर देखा गया है, जिसके बाद यह लोग और अधिक उग्र तेवरों में सामने आ रहे हैं। हिंदू समाज को जगाने वाले सभी साधु-संतों को इन खतरों पर नजर रखनी चाहिये। राम मंदिर आज नहीं तो कल बनेगा ही सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि अपना समस्त हिंदू समाज एकजुट रहे और पूरी मजबूती के साथ अपने मताधिकार का प्रयोग करे। यदि वर्तमान समय की अनुकूलता जरा सा भी लापरवाही से प्रतिकूलता में बदली तो जो किया गया है व किया जा रहा है वह सब धराशायी हो जायेगा। संतों के लिये यह समय अपनी नाराजगी दिखाने का नहीं अपितु पूरी एकजुटता के साथ हिंदू जनमानस को जगाये रखने का है । अयोध्या में मंदिर तो है ही बस उसे भव्य स्वरूप देना
बाकी है। हिंदू समाज के संतों को भी अब मठों व आश्रमों से निकलकर गांव- गांव तथा घर- घर जाकर नये सिरे से जन्म ले रहे खतरों से लडऩे का समय आ गया है।

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