यूपी चुनाव: भारतीय राजनीति में कब, क्यों और कैसे शुरू हुआ ‘आया राम, गया राम’ का ट्रेंड
नई दिल्ली। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी गलियारे में हलचल तेज है। प्रमुख सियासी पार्टियां रणनीति के तहत चुनावी चालें चल रही हैं। उम्मीदवारों के चयन से लेकर वोटरों के मिजाज को देखते हुए सभी दल अपनी रणनीति बना रहे हैं। इसमें कई ऐसे नेता हैं जो अपना नफा-नुकसान देखते हुए अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में जाते दिखाई दिए। एक तरह से कहा जाए तो ये हालात आया राम-गया राम की स्थिति को दर्शाता है। भारतीय राजनीति में कई बार ऐसे मौके देखने को मिले जिसमें नेता आया राम-गया राम के रवैये पर चलते दिखाई दिए। इस चुनाव में भी ये ट्रेंड नजर आ रहा है।
कई नेता जो इस ट्रेंड में हुए शामिल
यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी ने इस बार के चुनावी मौसम में बीजेपी को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है। उनके उनके बेटे रोहित ने बीजेपी ज्वाइन कर ली है। भारतीय राजनीति में इस स्थिति को ‘आया राम-गया राम’ कहा जाता है। इसके कई उदाहरण सियासत में देखने को मिले हैं जहां कई ऐसे नेता थे जो कई साल तक एक ही दल में रहे लेकिन अचानक ही दूसरे दल में जाने से भी गुरेज नहीं किया। ‘आया राम गया राम’ का जिक्र उस समय चर्चा में आया जब 1967 में हरियाणा के नेता गया लाल कांग्रेस पार्टी छोड़कर यूनाइटेड फ्रंट में चले गए। बाद में वापस कांग्रेस में आ गए। जब वो कांग्रेस में वापस लौटे तो पार्टी के नेता रहे राव बीरेंद्र सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि गया ‘राम इज आया राम’। ये बेहद छोटी घटना थी लेकिन उस समय से भारतीय राजनीति इस फ्रेज को अपना लिया।
भारतीय राजनीति में ‘आया राम-गया राम’ का ट्रेंड बढ़ने के बाद 1985 में दलबदल विरोधी कानून को लागू किया गया। जिसके चलते ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। कई बड़े नेता हैं जिन्होंने इस तरह से आया राम-गया राम की तर्ज पर पार्टी छोड़ी। 1979 में जॉर्ज फर्नांडीस ने महज इसलिए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का संसद में मजबूती से बचाव किया, जिससे की वो चरण सिंह कैंप में शामिल हो सकें। अगले ही दिन वो चरण सिंह कैंप में शामिल हो गए। ऐसा ही मामला हाल में अरुणाचल प्रदेश में दिखाई दिया, जहां मुख्यमंत्री पेमा खांडू, जो कि कांग्रेस विधायक थे। उन्होंने 2016 में महज तीन महीने के अंदर तीन पार्टियों में शामिल हुए। पहले वो कांग्रेस से विधायक थे और पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए, बाद में उस पार्टी का साथ छोड़कर वो बीजेपी में पहुंच गए। वर्तमान में वो बीजेपी में हैं और नॉर्थ ईस्ट में गठित बीजेपी की दूसरी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के बड़े नेता नरेश अग्रवाल के साथ ही ये ट्रेंड जुड़ा रहा है। उन्होंने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया। सपा में जाने से पहले वो लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। 2007 में बीएसपी की सरकार यूपी में आई तो उन्होंने बीएसपी ज्वाइन कर ली। 2012 के विधानसभा चुनाव में वो सपा में शामिल हो गए, वर्तमान में वो सपा से राज्यसभा के सांसद हैं। बीजेपी सांसद जगदंबिका बाल भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में पहुंचे हैं। चार बार सांसद रहे रमेश तोमर इस बार के यूपी चुनाव में धौलाना से बीजेपी के उम्मीदवार हैं। राजनीति में आया राम-गया राम का ट्रेंड हमेशा देखा जाता रहा है। इन नेताओं को इसका फायदा भी मिलता रहा है।
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Source: hindi.oneindia.com