बुझती जिंदगियों को अपने लहू से नया जीवन दे रहे देशबंधु

रुड़की : अपने लिए जियें तो क्या जियें, तू जी ये दिल जमाने के लिए। इन पंक्तियों को सार्थक कर रहे हैं रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब निवासी 42 वर्षीय देशबंधु गुप्ता। जीवन में अब तक 120 बार रक्तदान करके उन्होंने सैकड़ों लोगों को जीवनदान दिया है। वहीं, समाज सेवा के प्रति अपने इस जज्बे से सैकड़ों लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने में सफल हो चुके हैं।

सोने-चांदी के आभूषणों पर पॉलिश का काम करने वाले देशबंधु सिर्फ रुड़की ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों में भी रक्तदान जैसा पुण्य कार्य करते हैं। पहली बार किसी परिचित के कहने पर उन्होंने 16 वर्ष की आयु में रक्तदान किया था। इसके बाद उन्होंने रक्तदान को जीवन का ध्येय बना दिया।

ओ पॉजिटिव ग्रुप के देशबंधु को जब भी मालूम होता कि किसी व्यक्ति को रक्त की जरूरत है तो वे उसका जीवन बचाने फौरन मौके पर पहुंच जाते हैं। इस पुनीत कार्य में वे कभी भी धर्म-जाति को आड़े नहीं आने देते। हर तीन महीने में वे एक बार शहर के सिविल अस्पताल में जाकर रक्तदान करते हैं। इसके अलावा समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से भी समय-समय पर रक्तदान करते हैं।

कई बार ऐसी स्थितियां भी आईं, जब उन्होंने एक महीने में चार बार रक्तदान किया। एक बार तो मात्र दस मिनट के अंतराल पर दो बार रक्तदान कर वह दो जिंदगियों को बचा चुके हैं।

देशबंधु रक्तदान के अलावा समाज सेवा से जुड़े अन्य कार्य करने को भी सदैव तत्पर रहते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान हर साल पुलिस की ओर से उन्हें स्पेशल पुलिस अधिकारी नियुक्त किया जाता है। कहते हैं कि समाज सेवा ही मेरे जीवन का मकसद है। मैं जीवनभर तन-मन से समाज हित में कार्य करता रहूंगा। इससे मुझे जो आत्म संतुष्टि मिलती है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

देशबंधु चाहते हैं कि रक्तदान को लेकर लोगों के मन में जो भ्रांतियां हैं, उन्हें दूर किया जाए। ताकि सभी इस पुण्य कार्य में बढ़-चढ़कर भागीदारी करें।

 

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