पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कटौती कहीं मोदी सरकार के सामने खड़ी ना कर दे नई मुसीबत?
नई दिल्ली । चौतरफा महंगाई की मार झेल रही जनता को राहत देने के लिए शनिवार को केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल से एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला किया। सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 8 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 6 रुपये प्रति लीटर कम करने का फैसला किया था। इससे जहां आम जनता को राहत मिली है। वहीं, केन्द्र सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। आइए जानते हैं कि क्या एक्साइज ड्यूटी में यह कटौती मोदी सरकार के लिए नई मुसीबत तो नहीं खड़ी कर देगी? केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि एक्साइज ड्यूटी में इस कटौती की वजह से सरकार पर अतिरिक्त 1 लाख करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। बता दें, पिछले साल नवंबर में केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले एक्साइज ड्यूटी में कटौती का फैसला किया था। तब सरकारी खजाने पर 1,20,000 करोड़ रुपये का भार पड़ा था। यानी इन दोनों कटौतियों को मिलाकर सरकार के खजाने पर 2,20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा।एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी भारत सरकार जरूर बेचने में सफल रही है। लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति और एलआईसी के प्रदर्शन ने अन्य विनिवेश की योजनाओं पर कुछ महीने के लिए ग्रहण जरूर लगा दिया है। वहीं, एलआईसी में भी सरकार ने 5% के बजाए 3.5% हिस्सेदारी को ही बेचा है। बीते तीन साल के पैटर्न पर नजर डालें तो सरकारी कंपनियों से पैसा जुटाने के मामले में सरकार को बहुत सफलता नहीं मिली है। बीते वित्त वर्ष सरकार ने विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। जोकि बाद में घटाकर 78,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था। यानी सरकार के प्रयास के बाद भी सरकारी कंपनियों को खरीदने के लिए निवेशक बहुत उत्साहित नहीं दिखाई दे रहे हैं। इस साल के विनिवेश का लक्ष्य 65,000 करोड़ रुपये है जिसका एक तिहाई हासिल कर लिया गया है। वहीं बचे हुए बचे हुए लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार पवन हंस, BPCL, सेन्ट्रल इलेक्ट्राॅनिक, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और आईटीसी जैसी कंपनियों से अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रयास करेगी।