एशिया चैंपियन बनी इस भारतीय खिलाड़ी से जब उसकी बेटी ने कहा, ‘मां अब बहुत हुआ…’
भुवनेश्वर: अपने छोटे बच्चे से दूर राष्ट्रीय शिविर में ट्रेनिंग करना किसी भी मां के लिए मुश्किल होता है लेकिन गोला फेंक में एशियाई चैंपियन बनी मनप्रीत कौर पर अतिरिक्त दबाव था, क्योंकि उनकी पांच साल की बेटी ने उन्हें कहा था कि अब बहुत हो गया और मेरे पास वापस लौट आओ.गुरुवार को एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में महिला गोला फेंक में स्वर्ण पदक जीतने वाली मनप्रीत एनआईएस पटियाला में अपने पति-कोच करमजीत सिंह के साथ ट्रेनिंग करती हैं, जबकि उनकी बेटी जसनूर पिछले कुछ वर्षों से अपनी दादी के साथ है.
जसनूर पटियाला में ही अपनी दादी के साथ रहती है लेकिन एनआईएस में व्यस्त और कड़ी ट्रेनिंग के कारण मनप्रीत बेहद कम बार उससे मिलने जा पाती हैं और अधिकांश समय उन्हें अपनी बेटी के बारे में अपनी सास से ही पता चलता है. अब यह जसनूर इतनी बड़ी हो गई है कि उसे अपनी मां की गैरमौजूदगी महसूस होने लगी है और वह मनप्रीत को उसके साथ अधिक समय बिताने के लिए कहने लगी है.
मनप्रीत ने कहा, ‘जसनूर कुछ महीनों में छह साल की हो जाएगी और जब वह 10 महीने की थी तो मैंने ट्रेनिंग शुरू की और तब से ही मेरी सास उसकी देखभाल कर रही हैं. जसनूर के बारे में पूछने के लिए मैं रोज अपनी सास को फोन करती हूं.’
उन्होंने कहा, ‘वह अब चीजों को जानने लगी है, क्या हो रहा है आदि. उसे पता है कि मेरी प्रतियोगिता (एशियाई चैंपियनशिप में) खत्म हो गई है लेकिन मैं अब भी रुकी हुई हूं. उसने मुझसे पूछा कि मैं वापस क्यों नहीं आ रही. उसने फोन पर मुझे कहा कि अब बहुत हो गया वापस लौट आओ.’
मनप्रीत ने कहा, ‘मैं और मेरे पति उसके साथ नहीं हैं इसलिए दादी के साथ होने के बावजूद वह इसे महसूस करती है, यह प्राकृतिक है. मैं क्या करूं, मुझे अपने देश के लिए भी करना है. मैं संतुष्ट महसूस करती हूं कि मैं अपने देश के लिए कुछ तो कर रही हूं.’
मनप्रीत ने एशियाई चैंपियनशिप में 18.28 मीटर के प्रयास के साथ स्वर्ण पदक जीता. दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010 में उन्होंने 18.86 मीटर के प्रयास से राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया और फिर अपनी शादी और बेटी के जन्म के बाद तीन साल का ब्रेक लिया.
उन्होंने पिछले साल की शुरुआत में प्रतिस्पर्धाओं में वापसी की और रियो ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया, लेकिन फाइनल के लिए क्वालिफाई करने में नाकाम रही.
उन्होंने कहा, ‘जसनूर के जन्म के बाद का समय काफी मुश्किल था. मुझे धीरे धीरे ट्रेनिंग शुरू करनी थी, कदम दर कदम, क्योंकि मुझे सतर्क रहना था कि मैं खुद को चोट नहीं पहुंचाऊं, जिसके कारण ट्रेनिंग पूरी तरह से कर सकती थी. अगर परिवार का समर्थन है तो आप कुछ भी कर सकते हो. मुझे मेरे परिवार का समर्थन मिला. यही कारण है कि मैं आज यहां हूं. अगर परिवार साथ है तो काफी अच्छा लगता है.’