उत्तराखंड छात्रवृत्ति घोटाला: परीक्षा नियंत्रक गिरफ्तार,9 हिरासत में
करोड़ों के छात्रवृत्ति घोटाले में विजिलेंस ने मेवाड़ विश्वविद्यालय चित्तौड़गढ़ के परीक्षा नियंत्रक को गिरफ्तार कर लिया है। परीक्षा नियंत्रक पर आरोप है कि उसने छात्रवृत्ति का पैसा डकारने के लिए उत्तर पुस्तिकाएं चेक किए बिना परीक्षा परिणाम समाज कल्याण विभाग को दे दिया। इस मामले में अब तक नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर देहरादून जेल भेजा जा चुका है।
एसएसपी विजिलेंस डॉ. सदानंद दाते ने बताया कि असगर मेहंदी पुत्र एसएम इकबाल मोहसिन निवासी-अहिंसा खण्ड को गाजियाबाद से गिरफ्तार किया गया। असगर पर छात्रवृत्ति घोटाले में फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोप है। उसे मंगलवार को कोर्ट में पेशकर जेल भेज दिया गया।
इस मामले में यूनिवर्सिटी के हास्टल वार्डन और दो अन्य की गिरफ्तारी होनी है। यूनिवर्सिटी के चेयरमैन समेत आठ लोग पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं।
घोटाले का बड़ा खिलाड़ी है असगर: असगर पर आरोप है कि उसने मेवाड़ विश्वविद्यालय चित्तौड़गढ़, राजस्थान में परीक्षा नियंत्रक रहते हुये उत्तराखण्ड के एससी, एससी छात्र-छात्राओं को विवि का रेगुलर छात्र दिखाकर उनके फर्जी खाते खोले। जबकि ये छात्र कभी मेवाड़ यूनिवर्सिटी गये ही नहीं थे।
असगर मेहंदी ने छात्रों की परीक्षायें उत्तराखण्ड में अलग अलग जगह करवायी और कॉपी जांचे बिना रिजल्ट समाज कल्याण विभाग के छात्रवृत्ति पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया। इसके बदले आठ करोड़ की छात्रवृत्ति डकार ली गई।
08 करोड़ रुपये डकार लिए गए कॉपियां जांचे बिना रिजल्ट तैयार करके
09 लोगों को गिरफ्तार कर अभी तक भेजा जा चुका है देहरादून जेल
बैंक अफसरों की भी मिलीभगत विजिलेंस का कहना है कि आठ करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में वसुंधरा, गाजियाबाद स्थित कारपोरेशन बैंक के अफसर भी शामिल थे। मेवाड़ विवि ने बैंक के अफसरों से मिलीभगत कर छात्रवृत्ति की रकम डकारी।
ढैंचा बीज घोटाले में कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने ढैंचा बीज घोटाले को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। दिल्ली निवासी जयप्रकाश डबराल ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि 2006 में तत्कालीन राज्य सरकार ने ढैंचा बीज की खरीद की थी। बीज बाजार भाव से दोगुने दरों पर खरीदा गया था। आईटीआई से मांगी गई जानकारी में जिन ट्रकों के माध्यम से बीज उत्तराखंड में लाए जाने की जानकारी दी गई थी। टोल बैरियर में उन ट्रकों के उत्तराखंड में प्रवेश के प्रमाण नहीं मिले हैं। यह जानकारी कृषि निदेशक स्तर से आरटीआई के तहत मिली थी।
याचिका में तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र्र सिंह, कृषि सचिव ओमप्रकाश व निदेशक मदन लाल को इस में लिप्त बताते हुए कार्रवाई के निर्देश जारी करने की भी मांग की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए संयुक्त खंडपीठ ने सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।