अमित शाह से नजदीकी और बीजेपी को जिताने के जूनून से त्रिवेंद्र को मिली सीएम की कुर्सी

देहरादून
त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से उनकी नज़दीकी और संघ मे उनकी गहरी पैठ के अलावा उनकी बीजेपी को जिताने की जुनून की हद तक काम करने की अथक मेहनत सबसे अधिक मददगार साबित हुई। 2013 में जब लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर अमित शाह ने यूपी मे बीजेपी के प्रभारी की कमान संभाली तो उन्होंने त्रिवेंद्र रावत को सह प्रभारी के रूप में अपने साथ लिया था। जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस राज्य मे 73 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की तो उन्हें त्रिवेंद्र रावत के सांगठनिक कौशल का भी परिचय मिला। इसके बाद अमित शाह ने उन्हें अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अपनी टीम में बतौर राष्ट्रीय सचिव ले लिया। झारखंड में चुनाव से पहले उन्हें झारखंड का प्रभारी भी नियुक्त किया गया।

झारखंड मे जब उनके प्रभारी बनने के बाद बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार लाई तो उनके काम की तारीफ होने लगी। उसी समय उनकी शाह के साथ-साथ पीएम मोदी से नजदीकियां और बढ़ीं। हालाँकि इसके बाद 2014 के उपचुनाव में वह डोईवाला विधानसभा से चुनाव हार गए लेकिन तब यह भी कहा गया कि पार्टी की गुटबंदी के चलते उन्हें जानबूझकर हराया गया। यही बात राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अखर गई और उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हराने वालों को ही सबक सिखाने की ठान ली। उत्तराखंड में पिछले साल 18 मार्च को जब हरीश रावत की सरकार को अपदस्थ करने की योजना परवान नहीं चढ़ सकी तो भी त्रिवेंद्र सिंह रावत पार्टी के पक्ष मे लगातार माहौल बनाने में बढ़चढकर हिस्सेदारी करते रहे। उन्होंने अपने खिलाफ उपचुनाव में की गई गुटबाजी और हराने के षड्यंत्र पर भी चुप्पी साधकर अपना लक्ष्य बीजेपी को सत्ता हासिल कराने का ही बनाए रखा।

उत्तराखंड मे क्षत्रियों की खासी तादाद रही है। इनमें भी रावत जाति के लोगों की संख्या बहुसंख्या में मानी जाती है। इन चुनावों में भी चाहे बीजेपी हो या फिर कांग्रेस रावतों के चुनकर आने वालों की संख्या काफी रही है। इस बात ने भी केन्द्रीय कमान को एक रावत के रूप मे त्रिवेंद्र सिंह रावत को राज्य की कमान सौंपने के फैसले में बड़ी भूमिका निभाई है।

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