उत्तराखंड में चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल – राजेन्द्र भट्ट
उत्तर : बड़े परिवर्तन के साथ राज्य मे नई सरकार आ गई है और जन अपेक्षाओं का सैलाब उमड़ पड़ा है, इस सरकार के ऊपर । अब देखना है कि जोर कितना बाजुए कातिल मे है ! देखें क्या और कैसे हो पायेगा इस कैंसर ग्रस्त विभाग का इलाज,पूरे का पूरा विभाग गर्त मे जा चुका है. वैसे भी राज्य की आर्थिक हालत बहुत नाजुक है और इस स्थिति मे साधारण किस्म के सभी उपाय फ़ैल हो जायेंगे और असाधारण उपायों को ही सख्ती से लागू करना होगा, असाधारण राजनेताओं द्वारा.
राज्य के अनेक महत्वपूर्ण विभागों एवं सेवाओं मे से एक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाये भी है, जहाँ पर बीते वर्षों मे विशेषकर गत ०५ वर्षों से कोई भी ठोस सुधार या विकास का कार्य नहीं किया गया है, वरन इसके विपरीत जो भी मजबूत सिस्टम इस विभाग के थे तथा जो भी सेवा भावना इस विभाग के डॉक्टर अधिकारीयों व कर्मियों मे थी, उसे भी विभाग के राजनैतिक आकाओं ने चूर चूर कर दिया, जिसका नतीजा अब सामने है. विभाग की हालत यह है कि न तो अस्पतालों मे डाक्टर हैं, ना हीं दवा एवं इलाज के नए साधन । और तो और पुराने चले आ रहे अस्पतालों को न चला पाने की अपनी नालायिकता या फिर भ्रष्टाचार के कारण सरकारी अस्पताल प्राइवेट कम्पनी को पी. पी. पी. व्यवस्था के तहत दे दिए गए और बाद मे प्रबन्धन की कमी व भ्रष्टाचार के चलते कम्पनी ने काम बंद कर स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा कर दी, प्रदेश का आम जन मानस इस तरह के अनेकों व्यर्थ के प्रयासों से बहुत परेशान हो गया है, जिनसे राज्य के बहमूल्य संसाधनों को नष्ट करने के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं को ख़त्म किया जा रहा है. उपलब्ध अस्पतालों की दशा सुधारने के बदले इस तरह धन की बर्बादी किया जाना इस राज्य के भविष्य के साथ भी एक बड़ा मजाक है. इस तरह के अनेक विवादास्पद कार्य जो पूर्व सरकार के द्वारा किये गए या कराये गए, ने स्वास्थ्य सेवाओं का बेडा गड़क कर दिया है और रही सही कमी प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन और प्रशसन हेतु उपलब्ध मशीनरी के पूर्ण राजनीतिकरण, सचिवालय एवं निदेशालय के कुप्रबंधन ने पूरी कर दी है.
राज्य की सभी चिकित्सा इकाइयाँ जैसे ग्राम स्तर पर ए.एन.एम. सेंटर, विकास खंड स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला पुरुष तथा महिला चिकित्सालय, बेस चिकित्सालय, मेडिकल कॉलेज के चिकित्सालय (जो तृतीय श्रेणी की उच्च गुणवत्ता सुविधा उपलब्ध करने हेतु जिम्मेदार हैं) की हालत हर प्रकार से बहुत ख़राब है तथा कुल मिलाकर राज्य के इन अस्पतालों मे ऍम.बी.बी.एस. डाक्टरों के स्वीकृत पदों के सापेक्ष्य ६० प्रतिशत से भी ज्यादा पद रिक्त हैं. इसी तरह विशेषज्ञ डाक्टरों के तो ८० प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त हैं जिसमे स्त्री तथा प्रसूति रोग विशेषज्ञ जो ज्यादातर महिला चिकित्सक होती हैं, का घनघोर अभाव है या अभाव पैदा कर दिया गया है. पूर्व सरकार की न कोई सोच, न कोई ईच्छाशक्ति व्यवस्था सुधार की थी, जबकि इस बैड गवर्नेंस पर तत्काल सुधार किया जा सकता था .
सुदूर क्षेत्रों मे निवासरत लोगों को साधारण स्वास्थ्य समस्या हेतु भी देहरादून या अन्य शहरों की लम्बी कष्टप्रद यात्रा करनी पड़ती है, क्योंकि इन इलाकों मे डाक्टर नहीं हैं तथा एकाध भूला भटका मिल भी गया तो वह वर्षों से पोस्टेड बिना सिफारिश व पैसा न दे पाने वाला डाक्टर है, जो नियमित प्रशिक्षण के अभाव, साधनों के अभाव एवं कमजोर मनोबल के चलते उचित सेवा भी नहीं दे पाता है एवं अपनी नियुक्ति स्थल पर नियमित रूप से कार्य नहीं कर रहा है या लम्बे अवकाश पर पाया जाता है.
हैरत की बात यह है की सुदूर के इलाके, जहाँ पर बहुत कुशल डाक्टर पूरे साधनों के साथ होने चाहिए वहां अर्ध कुशल कर्मियों को आधुनिक चिकित्सा सेवा हेतु पहुँचाने की कोशिश सरकार की जारी है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे राज्य मे दो प्रकार के लोग रहते है प्रथम जो शहरों मे रहते हैं, वी.आई.पी. जिसमे नेतागण सर्वप्रथम हैं, के लिए विशेषज्ञ डाक्टर तथा गाँव एवं दुर्गम एरिया के लिए केवल स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, फार्मासिस्ट और अब दन्त चिकित्सक नियुक्त किये जाने हैं जो हार्ट, किडनी, ब्रेन अर्थात पूरे शरीर का इलाज करेंगे जिसके लिए वे अधिकृत भी नहीं है व कानून के अंतर्गत वे ये कार्य कर भी नहीं सकते !! हैरतंगेज काम कर गए पूर्व स्वास्थ्य मंत्री !! अर्थशास्त्रियों का मानना है एवं यह तथ्य भी है किसी भी सरकार का अपने नागरिकों को उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवा पर निवेश किया गया मूल्यवान समय एवं धन राज्य की तरक्की एवं भविष्य के लिए किया गया गोल्डन पूंजी निवेश है और तो और राज्य के विकास का सबसे सार्थक प्रयास है, यह उत्तराखंड के परिपेक्ष्य मे एक बहुत प्रासंगिक तथ्य है. इस राज्य मे स्वास्थ्य सेवाओं के आधुनिकरण, विकास एवं निरन्तर गुणवत्ता बनाये रखने के लिए न तो निवेश ही पर्याप्त है एवं जो निवेश है उसका जिस प्रकार से अनियोजित, अवांछित एवं अनियंत्रित खर्च हो रहा है वह संभवतः देश मे कहीं भी कभी नहीं हुआ है. केवल बड़ी मशीनों व उपकरणों को क्रय कर उन अस्पतालों मे रख दिया गया है जहाँ पर इन उपकरणों से सम्बंधित विशेषज्ञ डॉक्टर है ही नहीं.
स्वास्थ्य सेवा की लचर हालत से आम नागरिक को निजी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर जाना पडता है जो बहुत महंगा एवं श्रमसाध्य कार्य है, जिससे राज्य के आम नागरिक के आउट ऑफ़ पाकेट खर्च उसे गरीब से घोर गरीब तथा मिडिल क्लास से गरीब बनाते चले जा रहे हैं.
सरकार बुनियादी मुददों पर ध्यान न देकर पी.पी.पी. नामों का बोर्ड लगाकर अस्पतालों को निजी क्षेत्र की बेनामी कंपनियों को खुले आम बेचकर प्रदेश के सामुदायिक केन्द्रों को ठप्प कर देती है और बाद मे जाँच की बात कह कर पल्ला झाड लेती है और जनता भी चुनाव का धैर्य के साथ इन्तजार करती है. ये हालत है इस प्रदेश के सबसे भारी भरकम महकमे की जिसमे भारी सुधार व विकास केवल संसाधनों मे ही नहीं वरन कार्य कुशलता, संख्या, व्यवहार, अनुशासन, सेवा भावना एवं गुणवत्ता की सेवाओ मे भी किया जाना है.
वर्षों से मात्र घोषणाएं हो रही हैं की हम दक्षिणी राज्यों से चिकित्सक लायेंगे और देश के दक्षिणी राज्यों से चिकित्सक आने को तैयार बैठे हैं परन्तु राज्य की सरकार उन्हें ला नहीं रही है, राज की बात यह है की दरअसल इसलिए लाना ही नहीं चाह रही है क्योंकि उनकी नियुक्ति से किसी व्यक्ति विशेष को कोई आर्थिक लाभ की गुंजाईश नहीं है!
अनेकों महत्वपूर्ण बिंदु हैं परन्तु समस्या ये है कि कैसे इस गंदगी को साफ़ करेंगे? मशीनरी बेकार कर दी गई है, ट्रान्सफर एक उद्योग बना दिया गया है, जूनियर आफिसरों को जिलों मैं नियम विरुद्ध सेवा रूल्स के विरुद्ध बैठा दिया गया है , दर्ज़नों कोर्ट केसेस चल रहे हैं , रोज नए वाद पैदा हो रहें है पॉलिसीस तथा स्टैंडिंग गवर्नमेंट ऑर्डर्स की धज्जियाँ उड़ाई गई हैं , चिकित्सकों के स्थाई कैडर के बारे मेँ कोई सोच ही नहीं है, उनके साथ भिकारियों की तरह का व्यवहार सरकार कर रही है, उनको दिए जाने वाले विशेष प्रोत्साहन भत्ते के साथ उनसे लिए जाने वाले कार्यों के नियमित मूल्याकन की कोई व्यवस्था विकसित ही नहीं की गई, नियमित प्रशक्षणों, उच्च गुणवत्ता की दवाएं, उपकरणों को क्रय किये जाने की पारदर्शी व्यवस्था, भवनों व उपकरणों के रख रखाव की नीति व उसके क्रियान्वयन की कोई सोच ही नहीं है. वर्ष भर केवल चिकत्सकों के स्थानान्तरण का गोरख धंधा चलता है विभाग मे। विभाग को इतना कमजोर बना दिया गया है कि कोई अधिकारी महानिदेशक के पद पर आना नहीं चाहता है. अच्छे अधिकारी यदि कुशल चिकित्सक है तो अपने निजी व्ययसाय मे जा चुके हैं/जा रहें हैं तथा अच्छे अधिकारी जो प्रबंधन या प्रशासन कर सकते है, वो भी वी.आर.एस. ले रहे हैं. राज्य के कोषागार को लूटने वाले अधिकारी विभाग मे उच्च पदों पर आसित हैं. रूल्स आर फॉर दी फूल्स मुहावरा विभाग मे सिद्ध हो चुका है और यदि गहरी निष्पक्ष जाँच की जाय तो पिछले ०५ वर्षों मे चिकित्सकों की ट्रान्सफर फाइलों मे भारी घोटाला मिलेगा इसमे कोई शक ही नहीं है.
वित्तीय घोटालों मे लिप्त अधिकारी उच्च पदों पर आसित खुले आम घूम रहे हैं व सरकार के आंख व कान का कार्य कर रहे हैं. मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, सरकारी कर्मचारियों के हेल्थ कार्ड, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन , केंद्र पोषित योजनायें, केवल खरीदारी तक ही सीमित हैं और आज तक पूरी तरह से क्रियान्वित होकर राज्य को फायदा नहीं हुआ है. वर्षों से योजनायें बनती रही हैं लेकिन धरातल पर एक भी सही तरीके से आई भी नहीं कि घोटाला हो जाता है. विभाग के अधिकारी ज्यादा समय केवल व्यर्थ की जांचों मे या राजनितिक चापलूसी मे नष्ट करते है. किसी भी गंभीर से गंभीर प्रकरण पर जांच से पूर्व कोई अधिकारी निलंबित भी नहीं किया जाता ताकि उसके विरुद्ध जांच भी पूरी न हो पाए.
मेरा ऐसा मत नहीं है, नई सरकार गंभीरता से अन्य सभी विकास से सम्बंधित मुद्दों के साथ साथ स्वास्थ्य सेक्टर में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य दोनों विषयों पर सुधार और विकास की शानदार सुरुआत करेगी ऐसा पक्का विशवास है , ताकि प्रदेश के जन मानस को शीघ्र उच्च गुणवत्ता की प्रीवेन्टिव, प्रमोटिव एवम क्युरेटिव स्वास्थ्य सेवाएँ प्रत्येक चिकित्सा इकाई पर प्राप्त हो सकें. खास कर हर चिकित्सा इकाई पर २४ घंटे आकस्मिक सेवा, हर जिला अस्पताल पर प्रत्येक मरीज के रहने की साफ़ एवं स्वस्थ व्यवस्था, निशुल्क दवाएं , ड्रेसिंग , जांच के साथ साथ विशेषज्ञ डाक्टरों की उपलब्धता हो सके.
उपरोक्त के अतिरिक्त एक मुद्दा यह भी है क़ि अस्पताल के डाक्टर केवल अस्पताल मे ही कार्य करें और फील्ड के लिए या अन्य स्वास्थ्य कार्यों के लिए प्रथक से चिकित्सक या स्वास्थ्य कर्मी उपलब्ध हों. ऐसा नहीं हो कि जिला एवं बेस चिकित्सालय मे आने वाले मरीज को वहां पहुचने पर यह पता चले कि एकमात्र विशेषज्ञ डाक्टर तो वी.आई.पी ड्यूटी या अन्य गैर चिकित्सकीय कार्य पर है. इस कुव्यवस्था से, जिससे प्रदेश का आम जनमानस बहुत परेशांन है, को तो तत्काल ही नई सरकार के द्वारा ठीक करना होगा, तभी पता चलेगा की एक संवेदनशील सरकार आ गई है जो वास्तव मे परिवर्तन करेगी.