मानसून का आगमन व विदाई खतरनाक, सचेत रहने की जरूरत

देहरादून : मानसून के आगमन व विदाई के समय सबसे अधिक सचेत रहने की जरूरत है। यही वह समय है, जब अतिवृष्टि (बादल फटने) से भूस्खलन व बाढ़ की सबसे अधिक घटनाएं सामने आती हैं।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने वर्ष 1970 से वर्ष 2015 तक देश में आई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। ताजा घटनाओं की बात करें तो हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग व उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बादल फटने के बाद भूस्खलन के बड़े मामले प्रकाश में आ चुके हैं।

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा. आरजे पेरूमल व अमित कुमार ने वर्ष 1970 से 2015 के मध्य भूस्खलन व बाढ़ की 35 बड़ी घटनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि आपदा की 90 फीसद घटनाएं मानसून के प्रारंभ में जुलाई या जून में दर्ज की गईं।

वहीं, 20 फीसद से अधिक प्राकृतिक आपदा मानसून की विदाई के समय अगस्त मध्य व सितंबर  में आईं। जबकि मानसून सत्र के मध्य जुलाई आखिर व अगस्त की शुरुआत में 10 फीसद से भी कम घटनाएं हुईं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के इस अध्ययन को प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘जियोमार्फोलॉजीÓ में भेजा जा चुका है। डॉ. पेरूमल का कहना है कि अतिवृष्टि से भूस्खलन व बाढ़ का ट्रेंड बताता है कि मानसून सीजन के प्रारंभ व विदाई के समय सरकार को आपदा प्रबंधन के लिहाज से अधिक सजग रहना चाहिए।

देश की बड़ी आपदाओं का ट्रेंड 

-सितंबर 2014: जम्मू एंड कश्मीर के ऊधमपुर में भारी भूस्खलन

-जून 2013: उत्तराखंड की केदारघाटी में जल प्रलय

-सितंबर 2012: उत्तराखंड के ऊखीमठ क्षेत्र में अतिवृष्टि से भूस्खलन

-जुलाई 2007: उत्तराखंड के चमोली के देवपुरी क्षेत्र में भूस्खलन

-सितंबर 2007: सिक्किम में भूस्खलन

-जुलाई 2005: मुंबई में ऐतिहासिक बाढ़

-जून 2005: लेह में बाढ़ व भूस्खलन

-सितंबर 2003: उत्तराखंड में वरुणावत पर्वत पर भूस्खलन

-जुलाई 2003: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बाढ़

-जुलाई 2001: रुद्रप्रयाग में भूस्खलन

-जून 2000: उत्तराखंड के गंगोत्री धाम क्षेत्र में भूस्खलन

-जुलाई 1990: उत्तराखंड के नीलकंठ क्षेत्र में भूस्खलन

-जुलाई 1970: चमोली के बिरही (बेलाकुची) में भूस्खलन

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