न्यू ईयर पर परेड ग्राउड रहा गुलजार

देहरादून, । उत्तराखण्ड हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद उद्योग निदेशालय देहरादून एवं विकास आयुक्त (हथकरघा) भारत सरकार द्वारा नेशनल हैण्डलूम एक्सपो में न्यू ईयर के मौके पर लोगों का अच्छा उत्साह देखने को मिला। मंगलवार को साल का पहला दिन और परेड़ ग्राउड नैशनल हैण्डलूम एक्सपो में दूनवासियों का लगा रहा जमावाड़ा। मंगलवार को सुबह से ही हजारों की संख्या में लोग परेड़ ग्राउड में पहुंचे। दून मे काफी सर्दी हो रही है उसके बावजूद सांय तीन बजे से भारी संख्या में लोग परेड ग्राउड एक्सपो में आये। न्यू ईयर पर मंगलवार को गढ़वाली व्यंजनों के स्टॉल पर खासा भींड़ देखने को मिली। लोगों ने गढ़वाली काफली तोर की दाल, झंगोरे की खीर, भांग की चटनी, हरी राई की सब्जी, सिमल की सब्जी, कोदे की रोटी, पल्लर व गहत की दाल को बहुत पंसद किया जा रहा है। पूजा तोमर ने बताया कि गढ़वाली व्यंजनों की डिमांड बहुत अधिक हैं। मंगलवार को भीड़ देखकर उनके चेहरे खिले रहे। राष्ट्रीय हैण्डलूम प्रदर्शनी में 200 स्टॉलों में से उत्तराखण्ड के लगभग 45 स्टॉल लगाये गये हैं जिसमें कुछ स्टॉल उत्तराखण्डी अनाजों के स्टॉल हैं। जो भी पहाड़ी व्यंजनों का लुफ्त लेना चाहता है वह इस प्रदर्शनी में आकार अपनी इच्छा पूरी कर सकता है। इस प्रदर्शनी में आर्गेनिक उत्पादों में उड़द की दाल, राजमा, लोबिया, गहैत, काला भट्ट, लहसुन का अचार, मिर्च, शहद, गरम मसाले, धनिया, हल्दी, बिस्कुट और विशेष पहाड़ी मीठे व्यंजन उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय हैण्डलूम प्रदर्शनी में सस्ते दामों पर पहाड़ी अनाज भी उपलब्ध है, जिसमें आपको हर प्रकार का अनाज, दालें, घर का बना अचार और कई अन्य व्यंजनों की विविधता मिलेगी। गोपेश्वर चमोली उत्तराखण्ड से आई महिला ने बताया कि हम हर क्षेत्र में जाकर तीन से पांच कुन्तल पहाड़ी अनाजों व दालों को लाते हैं फिर उनकी साफ-सफाई कर शहरी क्षेत्रों में बेचते हैं। उन्होंने कहा कि हम इन आर्गेनिक दालों को थोक मूल्यों पर बेचते है जिनकी कीमत 50 रूपये से लेकर 200 रूपये तक की है। मधुमेह में मदद करने वाले मंडुआ के आटे से बने बिस्कुट व नमकीन देहरादून वासियों को खूब पसंद आ रही है। स्टॉल में मंडुआ, चावल, सोयाबीन और बाजरा जैसे विभिन्न प्रकार के आटे उपलब्ध हैं ये सभी घर में तैयार किया जाता है। आज पहाड़ी फसलों को इन प्रदर्शनी के माध्यम से अधिक से अधिक पदोन्नत करने की आवश्यकता है क्योंकि खेती को वास्तव में अच्छी तरह से प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है और उनकी बिक्री उत्तराखंड की देवभूमि की प्रामाणिकता को बनाए रखने की एक कोशिश है।

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