…तो इस तरह कुछ सालों में तबाह हो जाएंगे मोहल्ला क्लीनिक

नई दिल्ली । राजधानी में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए डिस्पेंसरियों, प्रसूति गृह व पॉली क्लीनिक आदि का मजबूत बुनियादी ढांचा पहले से मौजूद है। उन डिस्पेंसरियों की अहमियत को दरकिनार कर आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली की सत्ता हासिल करने के बाद मोहल्ला क्लीनिक को लोगों को घर के नजदीक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के नए करिश्मे के रूप में प्रचारित किया। हालांकि जिस तरह पोर्टा केबिन में ये मोहल्ला क्लीनिक बनाए जा रहे हैं वे असल में कुछ सालों के ही मेहमान है। क्योंकि उनकी आयु बहुत कम है। इसलिए 10 से 15 सालों में वे स्वत: ही तबाह हो जाएंगे।

इससे यह स्पष्ट है कि ये मोहल्ला क्लीनिक अस्थायी तौर पर ही बनाए जा रहे हैं। ये बीमार हो चुके प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का स्थायी इलाज नहीं है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017-18 तक कुल एक हजार मोहल्ला क्लीनिक बनाए जाने हैं। मौजूदा समय में 162 मोहल्ला क्लीनिक हैं, जिसमें 102 किराये के मकान में चल रहे हैं। इसके अलावा 60 मोहल्ला क्लीनिक विभिन्न इलाकों में पोर्टा केबिन से बनाए गए हैं।

पोर्टा केबिन 15 साल टिक पाएगा

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय का कहना है कि पोर्टा केबिन की आयु करीब 15 साल है। इससे स्पष्ट है कि मोहल्ला क्लीनिक दीर्घकालिक नहीं है। उसका ढांचा बेकार होने पर दोबारा निर्माण की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि पोर्टा केबिन 15 साल भी टिक पाएगा इस पर संदेह है। यह भी तब जब एक मोहल्ला क्लीनिक के निर्माण में करीब 20 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2015-16 के बजट में 500 मोहल्ला क्लीनिक के निर्माण के लिए 125 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। इस आधार पर पूरी परियोजना पर करीब 250 करोड़ खर्च होंगे।

कई जगहों पर तो फुटपाथ व नालों के किनारे मोहल्ला क्लीनिक बनाए गए हैं। इस वजह से कभी सड़क व नाले का दोबारा निर्माण होने पर मोहल्ला क्लीनिक को तोड़ना पड़ सकता है। इस बाबत स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय का कहना है कि इन मोहल्ला क्लीनिक को जरूरत पड़ने पर एक जगह से दूसरे जगह स्थानांतरित किया जा सकता है।

राजधानी में काफी संख्या में डिस्पेंसरियां हैं

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय लेखी का कहना है कि राजधानी में काफी संख्या में डिस्पेंसरियां हैं। अस्थायी मोहल्ला क्लीनिक के निर्माण में जितना बजट खर्च हुआ यदि उसे डिस्पेंसरियों की हालत सुधारने में खर्च कर दिया जाता तो बेहतर प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती थी। इन डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना ज्यादा जरूरी है।

दिल्ली में मौजूद डिस्पेंसरियां- 1507
प्रसूति केंद्र- 267
पॉली क्लीनिक-42
विशेष क्लीनिक- 27

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