सरकारी नौकरी छोड़ नर्मदा से सिक्के निकालने वाले बच्चों को दे रहीं शिक्षा

खंडवा। ओंकारेश्वर में नर्मदा के घाटों पर घूमते, फूल बेचते और नदी से नारियल और सिक्के निकालते बच्चे अब शिक्षा का ककहरा सीख रहे हैं। उन्हें अक्षर और अंक ज्ञान के साथ प्रारंभिक शिक्षा देकर स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा रहा है।

यह पहल की है भारतीय रक्षा विभाग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर निमाड़ में शिक्षा का अलख जगा रहीं भारती ठाकुर ने। 8 साल पहले नर्मदा परिक्रमा करने आईं भारती ने यहां शिक्षा से वंचित बच्चों को देख अपना जीवन ही इन्हें समर्पित कर दिया। वे अब तक 15 गांवों में अनौपचारिक शिक्षा कर शुरुआत कर चुकी हंैं, यहां करीब 1700 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं।

ओंकारेश्वर में स्वामी रामकृष्ण मठ के संन्यासी उरूक्रमानंद ने बच्चों की शिक्षा के लिए मठ में स्थान दिया है। हर सुबह वहां तीन घंटे बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा दी जाती है। इसके बाद बच्चे अपने माता-पिता के साथ फूल और बिल्व पत्र बेचने, नदी से नारियल निकालने जैसे काम करते हैं। भारती ठाकुर कहती हैं कि नर्मदा पट्टी में बच्चों को शिक्षा से जोड़ना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। इसके साथ ही उन्हें व्यावसायिक शिक्षा देकर रोजगार से जोड़ने का भी प्रयास कर रहे हैं।

9 साल पहले नर्मदा परिक्रमा

भारतीय रक्षा विभाग के आर्टिलरी केंद्र नासिक में कार्यक्रम प्रमुख भारती ठाकुर ने 2009 में छह माह का अवकाश लेकर नर्मदा परिक्रमा की। तब उन्होंने क्षेत्र में शिक्षा से वंचित बच्चों को देखा। कुछ ही दिन बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर वे नर्मदा पट्टी के गांवों में आ गईं और बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का काम शुरू कर दिया। वे 2010 में निमाड़ अभ्युदय रूरल मैनेजमेंट एंड डेवलपमेंट एसोसिएशन (नर्मदा) की स्थापना भी कर चुकी हैं।

हर माह जाती हैं बच्चों को ढूंढने

भारती ठाकुर हर माह में एक सप्ताह के लिए नर्मदा पट्टी के एक गांव में जाती हैं, वहां शिक्षा से वंचित बच्चों शिक्षा से जोड़ने का प्रयास करती हैं। गांव में अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित होने की स्थिति में अनौपचारिक शिक्षा केंद्र की शुरुआत करती हैं। मूल रूप से नासिक की निवासी भारती ठाकुर अब निमाड़ में ही बस गई हैं।

अब तक जुड़े 62 स्वयंसेवक

नर्मदा संस्था से हर गांव में स्वयंसेवक जुड़ रहे हैं। संस्था के दिग्विजयसिंह चौहान ने बताया कि 15 गांवों में करीब 62 स्वयंसेवक सेवा दे रहे हैं। गांव का व्यक्ति ही अपने ग्रामीणों को ठीक से समझ सकता है, इसलिए गांव के ही शिक्षित व्यक्ति को उस गांव के अनौपचारिक केंद्र का प्रभारी बनाया गया है।

एमपी बोर्ड की शिक्षा का सॉफ्टवेयर बनाया

मध्यप्रदेश बोर्ड की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से बच्चों को जोड़ने के लिए नर्मदा संस्था से जुड़े पुणे के एक इंजीनियर ने एमपी बोर्ड के पूरे कोर्स का एक सॉफ्टवेयर बनाया गया है। अनौपचारिक शिक्षा के बाद बच्चों को इस कोर्स से जोड़ा जाता है। इसके साथ ही युवाओं को कम्प्यूटर शिक्षा, संगीत, मोबाइल साइंस, सिलाई सहित अन्य व्यावसायिक शिक्षा देकर रोजगार से जोड़ने की भी पहल की जा रही है।

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