योग ने कराया पश्चिम का पूरब की संस्कृति से मिलन

उत्तरकाशी : योग सिर्फ शरीर को ही पुष्ट नहीं करता, बल्कि मन को साधकर आत्मा का परमात्मा से मिलन भी कराता है। और… अब तो वह ‘पश्चिम’ को ‘पूरब’ से मिलाने का कार्य भी कर रहा है। यूरोपीय देश जर्मनी की स्टेफनी का योग के जरिये ही उत्तरकाशी के पीयूष बनूनी से मिलन हुआ। अब ये दोनों मिलकर उत्तरकाशी में योग-ध्यान का विश्वस्तरीय केंद्र बनाने की तैयारियों में जुटे हैं।

उत्तरकाशी के कोटबंगला निवासी 32 वर्षीय पीयूष बनूनी ने वर्ष 2007 में मदुरैई (तमिलनाडु) स्थित अंतरराष्ट्रीय शिवानंद योग संस्थान से योग प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वह बहामास में करीब पांच साल तक योग प्रशिक्षक रहा।

साथ ही यूरोप के फ्रांस, स्विटरजरलैंड, जर्मनी व चेक रिपब्लिकन गणराज्य में आयोजित कई योग शिविरों में भी विदेशियों को योग का प्रशिक्षण दिया। विदेशियों से अच्छा तालमेल होने के कारण पीयूष अब तक एक हजार से अधिक विदेशियों योगाभ्यास के लिए उत्तरकाशी ला चुका है।

योग का ही संजोग (संयोग) था कि जर्मनी की स्टेफनी ने पीयूष को अपने जीवन की डोर सौंप दी। जर्मनी के बर्लिन विवि से परास्नातक 32 वर्षीय स्टेफनी की वर्ष 2013 में दिल्ली में आयोजित एक योग कार्यक्रम में पीयूष से मुलाकात हुई। पीयूष उसे अपने घर उत्तरकाशी भी लाया और परिजनों से मिलवाया। पीयूष के पिता स्वयं एक अच्छे ज्योतिषी हैं, इसलिए उन्होंने स्टेफनी की जन्मकुंडली बनाई और दोनों की कुंडली मिलने पर उन्हें विवाह की अनुमति दे दी।

14 अप्रैल 2017 को दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में स्टेफनी ने हिंदू धर्म अपनाया। उसे मीनाक्षी नाम दिया गया। इसी दिन दोनों विवाह के बंधन से भी बंध गए। स्टेफनी के पिता जर्मनी में सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हैं और स्टेफनी उनकी इकलौती संतान है। स्टेफनी का रुझान भारतीय संस्कृति के प्रति पहले से ही था और वर्ष 2002 से वह लगातार भारत आ रही थी। नतीजा वह अच्छी हिंदी भी सीख गई।

वर्ष 2011 में स्टेफनी ने जर्मनी में लोगों को योग करने के लिए प्रेरित किया और वहां के कई दलों को योग के लिए ऋषिकेश, उत्तरकाशी और केरल भी लाई।

पीयूष व स्टेफनी कहते हैं कि भारत की संस्कृति, सभ्यता, गंगा, हिमालय, यहां के पहाड़ और परिवेश से विदेशियों को परिचित कराना और उत्तरकाशी को योग-ध्यान का विशेष केंद्र बनाना उनका मुख्य ध्येय है। इसके लिए उन्होंने योजनाएं बनानी भी शुरू कर दी हैं।

 

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