नेता जी अब क्या होत जब चिडिया चूग गई खेत

विधानसभा चुनाव के समय अखिलेश यादव विरोधियों के निशाने पर थे। लेकिन उन पर अब तक का सबसे बड़ा आक्षेप उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने ही लगाया है। मुलायम की बातों से अखिलेश की संगठन व सत्ता दोनों क्षमताओं पर प्रश्नचिह्न लगा है। मुलायम सिंह यादव पहले भी कई अवसरों पर अपनी अप्रसन्नता जाहिर करते रहे हैं। सपा की सरकार के समय संगठन के अलावा मंत्रियों व कार्यकर्ताओं के आचरण पर वह सवाल उठाते थे। लेकिन इतनी तल्ख आलोचना उन्होंने कभी नहीं की थी। इस बार उन्होंने सबसे बड़ी गलती अपनी ही मानी है। यह भी अखिलेश की कार्यशैली पर अविश्वास की तरह है। मुलायम ने कही कि अखिलेश को प्रदेश की कमान सौंपना उनका गलत फैसला था। उन्हें 2012 में खुद ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए था। यदि वह मुख्यमंत्री बने होते तो सपा 225 से 47 पर नहीं पहुंचती। मुलायम का यह कथन सपा सरकार पर बड़ी टिप्पणी के रूप में है। इसका निहितार्थ यह है कि अखिलेश सरकार जन आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी। इसलिये उसे इतनी बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। मुलायम ने इसके आगे जो कहा उसमें संगठन पर आरोप है। मुलायम ने कहा कि कांग्रेस से गठबंधन करना नुकसानदेह साबित हुआ। कांग्रेस ने हमको बर्बाद करने में कसर नहीं छोड़ी थी, अखिलेश ने उसी से गठबंधन कर लिया। जिस समय यह गठबंधन हुआ, उस समय अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे। मुलायम को अध्यक्ष पद से जिस प्रकार हटाया गया, उससे भी वह आहत दिखे। उन्होंने जनेश्वर मिश्र पार्क में हुए आपात अधिवेशन की आलोचना की। इसमें पार्टी की स्थापना करने वाले को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव पारित हुआ था।

इसमें कोई संदेह नहीं कि विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले की स्थिति मुलायम के लिये सम्मानजनक नहीं थी। उन्होंने जिसका राजतिलक किया था, अपवाद को छोड़कर ये सभी उनके खिलाफ हो गये थे। कहां मुलायम के इशारे से टिकट बंटती थी, कहां उन्हें कुछ नामों के लिये निवेदन करना पड़ा, उसमें भी कुछ लोगों का पत्ता काट दिया गया। चुनाव प्रचार में भी उनकी भूमिका केवल कसम खाने तक सीमित थी। इससे तय हो गया था कि सपा की सफलता या असफलता का पूरा दारोमदार अखिलेश पर ही रहेगा। यदि सपा जीत जाती तो आज मुलायम को यह नहीं कहना पड़ता। तब वह यह नहीं कहते कि अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना गलत फैसला था। तब वह अपने को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाये जाने का दर्द भी भुला देते, तब यह भी माना जाता कि कांग्रेस से गठबंधन का फैसला दूरदर्शितापूर्ण था। लेकिन 47 सीटों ने माहौल बदल दिया। अखिलेश ने जिस प्रकार अपने नियंत्रण में कमान ली थी उन्हें यह बातें सुननी ही पड़ेंगी। ये बात अलग है कि मुलायम के पछतावे का अब कोई मतलब नहीं रहा। चिड़िया खेत चुग गयी है। यह मुलायम का पुत्र मोह ही था जो उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री के साथ−साथ प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी थी।
सपा की आन्तरिक कलह में दांव पेंच चल रहे हैं, लेकिन मुलायम के बयान ने नई बहस छेड़ी है। उनके बयान के एक दिन पहले ही कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि सपा के साथ गठबंधन जारी रहेगा। अखिलेश तो इससे एक कदम आगे बढ़कर बसपा से भी तालमेल की बात करने लगे थे। अखिलेश की संगठन संबंधी जो नीति है मुलायम उससे सहमत नहीं हैं। अखिलेश अपनी तरफ से राहुल गांधी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं। शायद उन्हें लगता है कि आज भी यूपी को यह साथ पसंद है। चुनाव प्रचार में अखिलेश लोगों को पत्थर वाली बुआ से सावधान रहने की अपील करते थे। आज वह कह रहे हैं कि सपा−बसपा का गठबंधन जिन लोगों ने तुड़वाया था, वह आज नहीं चाहते ऐसा हो। यह सही है कि सपा−बसपा के गठबंधन की प्रदेश में सरकार बनी थी। मुलायम उसके मुख्यमंत्री थे। उस समय मुलायम को जैसी अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता था, उसे वह कभी भुला नहीं सकते। दूसरी तरफ मायावती दो जून की गेस्ट हाऊस घटना को भुला नहीं सकतीं, जिसमें उन पर जानलेवा हमला हुआ था। तब गठबंधन तोड़ने वाले कोई और नहीं थे, यह शीर्ष स्तर की निजी शत्रुता का परिणाम था। इस मामले पर मुलायम व अखिलेश के विचार अलग हैं।
सत्ता के स्तर पर अखिलेश आज भी मानते हैं कि उनका काम बोलता था। उनकी सरकार ने विकास के कीर्तिमान बना दिये थे। मुलायम इससे भी सहमत नहीं, वह तो अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं। इसका सीधा निहितार्थ है कि सपा सरकार के दावे पर उनका विश्वास नहीं। मुलायम ने कहा भी है कि सरकार लखनऊ में बैठकर शिलान्यास करती रही। मतलब साफ है संगठन व सत्ता की कार्यप्रणाली को लेकर सपा में नई बहस शुरू हुई है। इसकी शुरूआत खुद मुलायम ने की है, इसलिये इसे पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अभी तक अखिलेश यादव पराजय के लिये कभी ईवीएम और कभी मतदाताओं पर प्रश्न उठाते रहे हैं। उनका कहना था कि जब पेट्रोल पम्प पर एक चिप से गड़बड़ी हो सकती है, तो ईवीएम में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। चुनाव आयोग ने उन्हें चुनौती दी थी कि गड़बड़ी करके दिखाएं। अखिलेश इसके लिये तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग खुद आशंका दूर करें। इसका प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि चुनाव आयोग पहले ही ऐसे आरोपों को खारिज कर चुका है। अखिलेश यह भी कहते हैं कि भाजपा की बातों से मतदाता भ्रमित हो गये, बहक गये। वैसे ईवीएम व बहकने की बात एक साथ सही नहीं हो सकती। मुलायम का बयान भी अखिलेश के बयानों को नकारने वाला है। उनके अनुसार संगठन व सरकार की कमियों से सपा पराजित हुई। देखना है यह चर्चा या बहस कहां तक जाती है।

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