जानिए शास्त्रों में हरियाली तीज का महत्व, ऐसे करें पूजा

देहरादून : तपती गर्मी से राहत देती बारिश की फुहारें और चारों ओर बिछी हरियाली की चादर। प्रकृति के इस रूप को देखकर पुलकित होकर नाचता मन। घरों में पेड़ पर डाले गए झूलों में झूला झूलती महिलाएं। हवा में घुलती घरों में बन रहे पकवानों की सुगंध। यही है उल्लास के साथ मनाया जाने वाला हरियाली तीज।

खैर, बदलते जमाने के साथ कुछ बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन उल्लास में कमी नहीं आई। शहरों में विभिन्न संगठनों का धूमधाम से तीज मनाने का सिलसिला जारी है। गांवों में आज भी पेड़ों पर झूले डालने की परंपरा जीवत है, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं है।

लेकिन, शहर की तर्ज पर गांव में भी महिलाएं और युवतियां एकत्र होकर नृत्य के साथ तीज के पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति देती हैं, जो उमंग और उल्लास को बढ़ाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार इसी दिन शिव और पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वती के 108वें जन्म में शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। इसलिए इसे सर्जन का दिन भी कहा जाता है। महिलाएं तीज पर व्रत रखकर शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए व्रत रखती हैं।

ऐसे करें पूजा 

घर की साफ-सफाई कर चौकी पर भगवान शिव, पार्वती और गणोश की मूर्ति को स्थापित करें। इसके बाद भगवान का स्मरण करें और शिव को बिल्व पत्र आदि अर्पित करें। पूजन के दौरान ‘ओम उमायै नम:’, ‘ओम पार्वत्यै नम:’ आदि का जाप करें। इस दिन महिलाओं और कन्याओं का मेहंदी लगाना भी मंगल का प्रतीक होता है।

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